For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐ दोस्त ! खुशतरीन वो मंज़र कहाँ गए

दोस्तो, एक और ग़ज़ल जो होते होते मुकम्मल हुई है, आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूँ जैसी लगे वैसे नवाजें   ....

ऐ दोस्त ! खुशतरीन वो मंज़र कहाँ गए
हाथों में फूल हैं तो वो पत्थर कहाँ गए

डरता हूँ मुझसे आज के बच्चे न पूछ लें
तितली कहाँ गईं हैं, कबूतर कहाँ गए

पुल जब से बन गया है नदी बेकरार है
बस्ती से नाखुदाओं के सब घर कहाँ गये

बातें तो हमसे करते थे दुनिया जहान की
जब वक्त आ गया तो वो तेवर कहाँ गये

दुनिया को जीत कर भी अलग क्या मिला उन्हें
सबको पता है मर के सिकंदर कहाँ गये

मंचों पे चुटकुलों से हुए हिट मुशाइरे
ग़ज़लें कहाँ गईं वो सुखनवर कहाँ गये


- वीनस
@ २०११
मौलिक व अप्रकाशित
२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२

Views: 958

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by दिव्या on June 7, 2013 at 1:01pm

वाह बहुत ही उम्दा गजल .... 
बातें तो हमसे करते थे दुनिया जहान की 
जब वक्त आ गया तो वो तेवर कहाँ गये 

दुनिया को जीत कर भी अलग क्या मिला उन्हें 
सबको पता है मर के सिकंदर कहाँ गये............... बहुत खूब 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 7, 2013 at 11:09am
आदरणीय वीनस जी, सादर आभार ...."तहे दिल से शुभकामनाऐं..स्वीकार कीजीए "
Comment by वीनस केसरी on June 7, 2013 at 11:08am

सौरभ जी,
जिन अशआर का जिक्र आपने किया है वही इस ग़ज़ल की मूल भावना और आत्मा हैं

बाकी तो आवरण है,, जो ग़ज़ल को मुकम्मल होले के लिए जरूरी है

सादर 

Comment by वीनस केसरी on June 7, 2013 at 11:06am

ब्रिजेश जी खुशी हुई कि ग़ज़ल इस मंच की एक दूसरे से सीखने सिखाने की मूल भावना को फलीभूत कर रही है 

Comment by वीनस केसरी on June 7, 2013 at 11:05am

महिमा श्री जी आपका हार्दिक आभार 

Comment by वीनस केसरी on June 7, 2013 at 11:05am

कुंती जी कब तक नकारेंगे .. एक दिन सच की आवाज मसनद से बुलंद होगी झूठ घुटनों तले सर झुकाए होगा 

आपका हार्दिक आभार 

Comment by वीनस केसरी on June 7, 2013 at 11:03am

श्याम नारायण जी आपका आभारी हूँ 

Comment by वीनस केसरी on June 7, 2013 at 11:03am

शालिनी जी आपको ग़ज़ल ने लाजवाब किया यह मेरे लिए भी संतुष्टी का कारक बना ...

Comment by वीनस केसरी on June 7, 2013 at 10:56am

सुरेन्द्र जी,
विडंबनाओं और विसंगतियों का काल है जिधर देखो उधर हालात खराब हैं ..

ऐसे में शेर के कलाम में जब इस समय और हालात को नहीं देखता तो मुझे हैरत भी होती है...
आपने ग़ज़ल को मान दिया इसके लिए आपका आभारी हूँ 

Comment by वीनस केसरी on June 7, 2013 at 10:53am

विजय जी 
ग़ज़ल आपके मन को भा गयी यह मेरे लिए भी खुशी की बात है 
स्नेह बनाये रखें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
8 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service