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मेरे द्वारा हल्द्वानी आयोजन में प्रस्तुत की हुई नज्म/गीत

जख्म कांटो से खायें  हैं हमें फूलों को सताना नहीं आता 

इश्क़े सफीने  बचाए हैं हमे तूफाँ में डुबाना नहीं आता 

 

तुम   बुजदिली कहलो या समझो शाइस्तगी मेरी  

 हुए सब अपने पराये हैं हमे  सच्चाई  छुपाना नहीं आता 

 

किसी ने दिल से निकाला ,  किसी ने राह में फेंका 

सर पे हमने बिठाए हैं हमे ठोकर से हटाना नहीं आता    

 

 कभी  ना  बेरुखी भायी   कभी ना नफरतें पाली 

दिलों में ही घर  बसाए हैं हमें महलात बनाना नहीं आता 

 

शहर में  धर्मों   के  भूसों   के  बड़े ढेर लगे हैं   

क्यों वो माचिस थमाए हैं  हमें चिंगारी लगाना नहीं आता 

 

जहाँ में  ईंटें भी देखी  सामने फर्ज भी देखे  

प्यार के सेतु बनाये हैं हमे दीवारें बनाना नहीं आता  

 

निज नस नस में बसी देश की माटी  की है खुशबू  

जब चाहे परदेस में जाएँ हमे स्वदेश भुलाना नहीं आता  

 

क्या होती है आजादी ,उनके परों  पे लिखा है  

दुखी पंछी उडाये हैं हमे पिंजरों में सजाना  नहीं आता  

 

'राज' ने जीत भी देखी औ  कभी हार भी देखी 

लम्हे दिल में छुपाये हैं हमें दुनिया को जताना नहीं आता 

************************************************************

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 23, 2013 at 8:19pm

आदरणीया प्रग्या जी आपका हार्दिक आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 23, 2013 at 8:05pm

आदरणीय मंजरी पाण्डेय जी नज्म आपको पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया |

Comment by Pragya Srivastava on June 23, 2013 at 7:34pm
राजेश कुमारी जी,
हार्दिक बधाई सुंदर नज्म
Comment by mrs manjari pandey on June 23, 2013 at 4:27pm

     अच्छी नज़्म के लिए बधाई आदरणीया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 22, 2013 at 9:19am

आदरणीय डी पी माथुर जी आपको रचना पसंद आई  आपका हार्दिक आभार|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 22, 2013 at 9:18am

आपका हार्दिक आभार आदरणीय जितेन्द्र जी |

Comment by D P Mathur on June 22, 2013 at 8:24am

क्या होती है आजादी ,उनके परों पे लिखा है
दुखी पंछी उडाये हैं हमे पिंजरों में सजाना नहीं आता
आदरणीया आपको इस भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 22, 2013 at 1:16am
आदरणीया..राजेश कुमारी जी, बहुत ही उम्दा नज्म ...'कभी ना बेरुखी भायी, कभी ना नफरतें पाली..दिलों में ही घर बसाए है हमें महलात बनाना नहीं आता..' आदरणीया शुभकामनाऐं स्वीकार करें

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