For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम सोई

सपनों में खोई

अधर मंद मुस्काते हैं

ये सपने

चुपके से आकर

आखिर क्या कह जाते हैं।

 

बागों में

चंपा महकी है

मंद हवा

बहकी बहकी है

घनी रात को, तारे आकर

रूप नया दे जाते हैं।

 

रंग भरे

यह श्वेत चांदनी

कण कण में

इक मधुर रागिनी

नींद भरे बोझिल ये नयना

सुध बुध सब हर जाते हैं।

.

 - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 812

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 25, 2013 at 8:46pm

आ0 बृजेश भाई  जी,  सादर प्रणाम!     वाह!   सुर ताल में हृदय स्पर्शी गीत! सुन्दर प्रस्तुति के लिए तहेदिल से बधाई स्वीकारें। सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2013 at 4:49pm

बृजेश भाई , अति सुन्दर गीत रचना , वाह वाह् , आनन्द आ गया !! बहुत बधाई !!

Comment by बृजेश नीरज on August 25, 2013 at 2:55pm

आदरणीया मंजरी जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by mrs manjari pandey on August 25, 2013 at 2:27pm

    आदरणीय ब्रुजेश ी रात के ओस सी भीगी रचना . पढ कर सुकून लगा . हर्दिक बधाई

Comment by बृजेश नीरज on August 25, 2013 at 9:00am

आदरणीय आशुतोष जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on August 25, 2013 at 8:59am

आदरणीय जितेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 25, 2013 at 8:55am

आदरनीय नीरज जी ..अलंकारों से सजी मनमोहक भाव मई शसक्त रचना ...आनंद आ गया ...सदर बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 25, 2013 at 12:15am

अथाह सीमा तक के गहरे भाव रचना में समाये हुए है

बहुत बहुत बधाई  आदरणीय बृजेश जी!

Comment by बृजेश नीरज on August 24, 2013 at 11:11pm

आदरणीय नीरज जी आपके शब्दों ने बहुत बल दिया मुझे। आपने गाकर देखा और यह उस कसौटी पर खरी उतरी, यह जानकर संतुष्टि हुई। आपका हार्दिक आभार!

Comment by Neeraj Nishchal on August 24, 2013 at 10:08pm

संगीत में सजी सुरमयी आपकी कविता पढ़कर
आज ये ज़रूर सीखने को मिला की व्याकरण की
लय में आने पर कविता किस तरह संगीत में स्वतः
आ जाती है और शायद अगर कविता ठीक ठीक
संगीत में लिखी जाए तो शायद उसके
कदम व्याकरण की राहों पर भी ना डगमगाएं
पहली बार आपकी कविता मेरे गाने में आयी
है और जब एक लाइन को बार बार गाता हूँ
तो उसके भावों में डूबता हूँ , मेरे लिए ये
कविता का रसपान करना है , और एक
सुन्दर सुहानी रात की बहुत शीतल और बहुत
ठंडी अनुभूति हुयी आपकी कविता के गायन से ।
आदरणीय बृजेश जी
ह्रदय के अहो भाव से बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service