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प्रेम योग - कुंडली छंद

बीमारी के अर्थ दो , नहि केवल ये रोग  

इक तो केवल रोग है, दूसर केवल योग   

दूसर केवल योग, बहूत है कठिन समझना   

प्रेम रोग इक भाव , इसे है सरल समझना 

कह सागर सुमनाय,कहो अब कुशल तिहारी  

रोग योग दो अर्थ , प्रेम कहा या बिमारी  

मौलिक व अप्रकाशित 
आशीष श्रीवास्तव (सागर सुमन) 

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Comment

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Comment by Ashish Srivastava on September 3, 2013 at 10:40am

Dr.Prachi Singh जी : आपके सुझाव से सहमत हूँ , और भविष्य में इन सब बातों का ध्यान रखूँगा |  लेकिन मेरे मन में एक संशय है की कुंडली छंद के विधान अनुसार प्रथम और अंतिम शब्द का समान होना अनिवार्य है , ये समानता अर्थ पर आधारित ही की मात्र पर या दोनों पर ही , मेरी इस छंद में  प्रथम और अंतिम शब्द में मात्र भिन्नता है , क्या ये विधान संगत है या नहीं ? 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 3, 2013 at 9:42am

कुंडलिया छंद पर प्रयास के लिए हार्दिक बधाई आ० आशीष श्रीवास्तव जी 

किन्तु छंद रचना में कथ्य बिखर सा गया, स्पष्टता नहीं है.

दूसरा को दूसर लिए जाने कि क्या विवशता ?... इसे दूजा लिखा जाए तो शायद सहज लगेगा 

बहुत को बहूत लिखने से मात्रा ज्यादा हो रही है 

अंतिम पंक्ति में भी कहा लिखा गया है... कहें या कहो होना चाहिये शायद 

कथ्य प्रस्तुति में और स्पष्टता लाने के प्रयास के साथ ही इन सुझावों की तरफ ध्यान दीजिए 

शुभेच्छाएँ 

कृपया ध्यान दे...

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