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तुझको देखूं, तुझे चाहूँ, तुझी से प्यार करूँ...

तुझको देखूं, तुझे चाहूँ, तुझी से प्यार करूँ । 

तेरे सिवा न किसी पर भी ऐतबार करूँ ॥ 

तू न आई है, ना आएगी, मेरे मिलने को । 

ये जानकर भी, मै बस तेरा इंतज़ार करूँ ॥

तू पशेमा नहीं होती है, बेवफा होकर । 

मै  वफ़ा करके भी, अपने को शर्मसार करूँ ॥ 

तेरी रातें तो महकती हैं गुलाबों की तरह । 

अपनी रातों को बता कैसे लालाज़ार करूँ ॥ 

नींद उड़ जाए तेरी, जब भी मेरा नाम आये । 

मै  चाहता हूँ तुझे, कुछ  ऐसे बेक़रार करूँ ॥ 

दर्द बढ़ जाता है हद से, जो तेरी यादों का । 

जी में आता है इस दिल को जला दूँ, इसे अंगार करूँ ॥ 

हसरत-ए -वीर यही है मेरे मालिक तुझसे । 

दम-ए -आखिर तलक, चाहूँ मै उसे प्यार करूँ ॥ 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Anil Chauhan '' Veer" on September 9, 2013 at 6:48am

 ram shiromani pathak भाई साहब बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by बृजेश नीरज on September 8, 2013 at 10:12am

बहुत अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!
भाई जी, क्या यह गज़ल है? इसकी बहर क्या है?
कृपया मार्गदर्शन प्रदान करें।
सादर!

Comment by vijay nikore on September 7, 2013 at 8:56pm

सुन्दर रचना के लिए बधाई।

सादर,

विजय निकोर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 7, 2013 at 8:10pm

वीर भाई , !! सुन्दर रचना हुई !!  कोटिशः बधाई !!

Comment by रविकर on September 7, 2013 at 7:43pm

बढ़िया प्रस्तुति-
आभार आदरणीय-

Comment by Meena Pathak on September 7, 2013 at 6:36pm

बेहद उम्दा .. बहुत बहुत बधाई

Comment by ram shiromani pathak on September 7, 2013 at 3:59pm

बहुत सुन्दर भाव //हार्दिक बधाई आपको भाई 

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