For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम्हारे ही भरोसे हूँ

 1 2 2 2   1 2 2 2
कभी यूँ पास आ जाना
किया वादा निभा जाना /


गजब की यह फकीरी है
इसे तुम अब हटा जाना /


गरीबी हो अमीरी हो
कसम अपनी निभा जाना /


तुम्हारी आस आने की
जरा दिल में जगा जाना /

तुम्हारे ही भरोसे हूँ
भरोसा यह बढ़ा जाना /


दिलों को खोल कर अपने
गिले शिकवे मिटा जाना /

नहीं तकरार करना अब
हमें झट से मना जाना /


तुम्हें हम कह नहीं सकते
दिलों को अब मिला जाना //


..................................

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 611

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on September 22, 2013 at 8:00am

दिलों को खोल कर अपने
गिले शिकवे मिटा जाना /

अति उत्तम रचना .. बधाई आ० सरिता जी

Comment by वीनस केसरी on September 21, 2013 at 11:05pm

तुम्हारी आस आने की
जरा दिल में जगा जाना /

तुम्हारे ही भरोसे हूँ
भरोसा यह बढ़ा जाना /


दिलों को खोल कर अपने
गिले शिकवे मिटा जाना /

नहीं तकरार करना अब
हमें झट से मना जाना /


छोटी बहर पर ऐसी शानदार ग़ज़ल पढ़ कर आनंद आ गया
हार्दिक बधाई  स्वीकारें

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 21, 2013 at 4:21pm

दिलों को खोल कर अपने 
गिले शिकवे मिटा जाना बेहतरीन ग़ज़ल का ये शेर मुझे बेहद भाया ..आदरणीया सरिता जी आपको हार्दिक बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 20, 2013 at 11:25pm

तुम्हारे ही भरोसे हूँ
भरोसा यह बढ़ा जाना

बहुत खुबसूरत गजल , बहुत बहुत बधाई आदरणीया सरिता जी

Comment by MAHIMA SHREE on September 20, 2013 at 8:41pm

बहुत ही प्यारी और मधुर  गज़ल आदरणीया सरिता जी बधाई आपको

Comment by annapurna bajpai on September 20, 2013 at 6:10pm

आ0 सरिता जी बहुत खूबसूरत गजल कही आपने आपको बहुत बधाई ।

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 20, 2013 at 3:55pm

वाह वाह आदरणीया सरिता जी छोटी बहर में बेहद सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर पसंद आये सुन्दरता से निभा गए आपने बधाई स्वीकारें.

Comment by रविकर on September 20, 2013 at 2:53pm

सुन्दर आदरेया-

गजल पर टिप्पणी करना-
हमें आया नहीं अबतक |
बहुत सुन्दर बड़ी अच्छी -
कहूँ आखिर यहाँ कब तक |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2013 at 1:30pm

आदरणीय सरिता जी , छोटी बह्र मे बहुत अच्छी गज़ल कही आपने , ढ़ेरों बधाई !!!!

Comment by shalini rastogi on September 20, 2013 at 12:33pm

बहुत खूब सरिता जी ... ग़ज़ल विधा में एक अच्छा प्रयास !

साभार!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक…"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ग़ज़ल पर नज़र ए करम का जी गुणीजनो की इस्लाह अच्छी हुई है"
2 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मार्ग दर्शन व अच्छी इस्लाह के लिए सुधार करने की कोशिश ज़ारी है"
2 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सहृदय शुक्रिया आदरणीय इतनी बारीक तरीके से इस्लाह करने व मार्ग दर्शन के लिए सुधार करने की कोशिश…"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम - सर सृजन पर आपकी सूक्ष्म समीक्षात्मक उत्तम प्रतिक्रिया का दिल…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"मतला नहीं हुआ,  जनाब  ! मिसरे परस्पर बदल कर देखिए,  कदाचित कुछ बात  बने…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आराम  गया  दिल का  रिझाने के लिए आ हमदम चला आ दुख वो मिटाने के लिए आ  है ईश तू…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और मार्गदर्श के लिए आभार। तीसरे शेर पर…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"तरही की ग़ज़लें अभ्यास के लिये होती हैं और यह अभ्यास बरसों चलता है तब एक मुकम्मल शायर निकलता है।…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"एक बात होती है शायर से उम्मीद, दूसरी होती है उसकी व्यस्तता और तीसरी होती है प्रस्तुति में हुई कोई…"
6 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी हुई। बाहर भी निकल दैर-ओ-हरम से कभी अपने भूखे को किसी रोटी खिलाने के लिए आ. दूसरी…"
6 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी निबाही है आपने। मेरे विचार:  भटके हैं सभी, राह दिखाने के लिए आ इन्सान को इन्सान…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service