कर लो सब से दोस्ती, छोड़ो अब तकरार
जिंदगानी दो दिन की बांटो थोड़ा प्यार //
बांटो थोड़ा प्यार, यही है दौलत असली
प्यार स्नेह को मान ,बाकी सभी है नकली
धन दौलत सब छोड़ ,जीवन में प्यार भर लो
रहे कोई न गैर ,सब से दोस्ती कर लो //
................मौलिक व अप्रकाशित..........
Comment
आ० सरिता जी
अब शिल्प को और गहनता और सूक्ष्मता से देखिये समझिये और गेयता के अनुरूप उसका निर्वहन कीजिये..
आदरणीय सौरभ जी नें बहुत ही विस्तार पूर्वक सम्यक जानकारी दी है आप उसका अवश्य ही लाभ उठाएं.. ऐसी शुभ अपेक्षाएं हैं
प्रयास के लिए हार्दिक बधाई
अरुण आपने ठीक कहा मुझसे उम्मीदें बढ़ गई हैं
आपकी उम्मीदों पर खरी उतर पायूं इसकी पूरी कोशिश रहेगी ,शुक्रिया
शालिनी जी शुक्रिया
आदरणीय सौरभ जी हार्दिक अभिनन्दन आपने पुनः विस्तार से इसे समझा दिया है , मेरी पूरी कोशिश रहेगी की आपको अब निराश ना कर मात्रिक विन्यास के साथ साथ गेयता पर पूरा ध्यान दूंगी
आदरणीया सरिता जी अब आपसे उम्मीदें बढ़ गई हैं आप मात्रा गणना में निपुण हो गई हैं प्रवाह और शब्द चयन पर ध्यान दें केवल भाव अच्छे होंने से काम नहीं चलेगा.
सरिता जी
आपकी यह कुण्डलिया बहुत सुन्दर भावों को संप्रेषित कर रही है ... बाकी छंद विधान पर बोलने का तो मेरा सामर्थ्य ही नहीं ... गुरुजनों की बात शिरोधार्य कर प्रयास करते रहें |
साभार!
आदरणीया सरिताजी, आपकी दोहा या कुण्डलिया छंदों पर हुई कोशिश प्रेरक है.
किन्तु मैंने अक्सर देखा है कि चरणों या पदों में कुल मात्रिकता का आप निर्वहन तो करती हैं लेकिन शब्द-संयोजन गेयता के अनुसार न होने के कारण आपके छंदों का वाचन सदा से लय-कटु होता है.
आपको संभवतः स्मरण हो एक बार आपको किसी आयोजन में मैंने दोहा के चरणों के शब्दों के विन्यास पर कुछ सुझाव दिये थे.आप उसका अनुसरण कीजिये अन्यथा प्रयास सटीक नहीं होता दिख रहा है.
उसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए मैं दोहा और रोला के चरणॊं के विन्यास पर जिन पर कुण्डलिया छंद निर्भर है, अपनी बातें कह रहा हूँ जोकि शास्त्र सम्मत हैं -
जो दोहा विषम शब्दों से प्रारम्भ होता है उसके विषम चरण का विन्यास मान्य रूप से ३, ३, २, ३, २ होता है. अर्थात त्रिकल के पीछे त्रिकल फिर द्विकल पर त्रिकल और पुनः द्विकल हो. चौथा त्रिकल ऽ। (गुरु लघु) ही हो ऐसा मान्य है अन्यथा गेयता के टूटने की पूरी संभावना बनी रहती है.
अब आप अपने उपरोक्त छंद के दोहे वाले भाग को दखिये, क्या ज़िन्दगानी शब्द मुआफ़िक है ? ज़िन्दगानी के ज़िन्द यानि त्रिकल के बाद गानी के चौकल का आना तुरत लयभंग की स्थिति बना रहा है. उसके आगे के तो सारे शब्द क्या सम्भालेंगे ?
दूसरा नियम, जो दोहा सम शब्दों यानि गुरु गुरु (ऽऽ) या लघु लघु (। ।) से प्रारम्भ हो तो उसके विषम चरण का विन्यास मान्य रूप से ४, ४, ३, २ होता है. चौकल के पीछे चौकल फिर त्रिकल पर द्विकल. त्रिकल ऐसे में कभी ।ऽ (लघु गुरु) न हो.
दोहे का सम चरण मुख्यतः ४, ४, ३ और ३, ३, २, ३ के विन्यास पर होता है. इसका त्रिकल मात्र और मात्र ऽ। (गुरु लघु) ही हो सकता है.
इसी तरह रोला वाले भाग के विषम चरण जोकि कुल ११ मात्राओं का होता है दोहे के सम चरण का आइडेंटिकल होता है अतः कोई परेशानी नहीं है. किन्तु, सम चरण का विन्यास जो कि कुल १३ मात्राओं का होता है, ३, २, ४, ४ या ३, २, ३, ३, २ होता है.
इस हिसाब से बाकी सभी हैं नकली जैसा चरण कैसे लय या गेयता का निर्वाह करेगा ? कोई कारण ही नहीं बनता. शुरुआत में त्रिकल का आना अवश्य-अवश्य है, लेकिन आपने लिया है चौकल यानि बाकी.
इसीतरह है जीवन में प्यार भर लो. जी ना, यह चरण भी ख़ारिज़ है. जीवन शब्द चौकल होने से रोला के सम चरण के प्रारम्भ में स्वीकार्य ही नहीं होगा.
आगे आप स्वयं गणना करें आदरणीया, और स्वयं साझा करें कि प्रस्तुत छंद के कौन-कौन से पद नियमानुसार दुरुस्त हैं.
सादर
बहुत बढ़िया भाव-
शुभकामनायें आदरेया-
आदरणीय गिरिराज जी आभारी हूँ
आदरणीय अन्नपूर्णा जी शुक्रिया
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