आँख मिचौली खेलता, मुझसे मेरा मीत
अंतरमन के तार पर, गाए मद्धम गीत
जैसे सूरज में किरण, चन्दन बसे सुगंध
प्रियतम से है प्रीत का, मधुरिम वह सम्बन्ध
क्यों अदृश्य में खोजता, मनस सत्य के पाँव
सहज दृश्य में व्याप्त जब, उसकी निश्छल छाँव
संवेदन हर गुह्यतम, सहज चित्त को ज्ञप्त
आप्त प्रज्ञ सम्बुद्ध वो, ज्ञानांजन संतृप्त
प्रीत प्रखरता जाँचती, नित्य नियति की चाल
मोहन लोभन फाँसते, छद्म इन्द्र के जाल
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
दोहा प्रयास की सार्थकता को मान देने के लिए आभार आ० अनुराग सैनी जी
एक उत्कृष्ट दोहावली ! सार्थक प्रयास ! हार्दिक बधाई !
दोहावली पर उत्साहवर्धक अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी
जैसे सूरज में किरण, चन्दन बसे सुगंध
प्रियतम से है प्रीत का, मधुरिम वह अनुबंध //////बहुत प्यारी उपमा
क्यों अदृश्य में खोजता, मनस सत्य के पाँव
सहज दृश्य में व्याप्त जब, उसकी निश्छल छाँव ////सदैव यथार्थ
बहुत ही उच्च कोटि के दोहे आदरणीया प्राची जी //हार्दिक बधाई आपको
आ० बैद्यनाथ सारथी जी
दोहों की प्रस्तुति और बिम्ब आपको प्रिय लगे, यह जानना संतोषकारी है ..हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
दोहावली के कथ्य की गूढता आपको पसंद आयी.. और आपका प्रोत्साहित करता अनुमोदन प्राप्त हुआ..आपको हार्दिक धन्यवाद
सच कहूँ तो .... अति प्रिय लगी ! अत्यंत मधुर और सहज बिम्ब के साथ मनोहारी रचना ..बधाई आपको :)
आदरणीया प्राची जी , बहुत सुन्दर , गूढ़ बातें लिये आपके दो हे अच्छे लगे !! आपको हार्दिक बधाई !!
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