छंद त्रिभंगी : चार पद, दो दो पदों में सम्तुकांतता, प्रति पद १०,८,८,६ पर यति, प्रत्येक पद के प्रथम दो चरणों में तुक मिलान, जगण निषिद्ध
रज कण-कण नर्तन, पग आलिंगन, धरती तृण-तृण, अर्श छुए
कर तन मन चंचल, फर-फर आँचल, मुक्त उऋण सी, पवन बहे
सुन क्षण-क्षण सरगम, अन्तर पुर नम, विलयन संगम, भाव बिंधे
सुन्दरतम नियमन, श्रुति अवलोकन, लय आलंबन, सृजन सुधे
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
हार्दिक धन्यवाद प्रिय राम शिरोमणि जी
बहुत ही सुन्दर त्रिभंगी छंद आदरणीया पढ़कर आनंद आ गया // हार्दिक बधाई आपको //सादर
आ० चन्द्र शेखर पाण्डेय जी \
रचना पर आपका सराहनात्मक अनुमोदन प्राप्त करना आश्वस्तिकारी है
सादर धन्यवाद
आ० लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी
शब्द्संयोजन पर सराहना के लिए हार्दिक आभार
प्रिय अरुण शर्मा जी
त्रिभंगी छंद पर मुक्तकंठ से सराहना कर उत्साहवर्धन करने के लिए धन्यवाद
मुग्ध करती इस सुन्दर त्रिभंगी से साक्षात कराने हेतु हार्दिक आभार आदरणीया प्राची मैम।
सुन्दर शब्द संयोजन में रची प्रकृति को समर्पित छंद त्रिभंगी रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया डॉ प्राची जी |
आदरणीया प्राची दी आपने प्रकृति को बहुत ही नजदीकी से समझा जाना और छंद बद्ध किया और वो भी इतनी सहजता और सुन्दरता से भाव की नदी ऐसी बही की ह्रदय तृप्त हो गया, वायु इतनी सुन्दर बही कि वाह महका गई. इस सुन्दर शानदार हृदयस्पर्शी प्रस्तुति पर ढेरों ढेरों बधाई स्वीकारें दी.
आदरणीय राजेश जी ,
//आपकी शब्दावली कुछ इस तरह की होती है जो बरबस अंतर को आंदोलित करती हैं पर इस आंदोलन में हाहाकार नहीं होता है एक मधुसिक्तता होती है जो कांत भाव से सबकुछ आच्छादित कर लेती है जैसे नुपूर की ध्वनि कभी दूर कभी पास से आती -जाती रहती हो//..........भाई जी, आपके इन शब्दों नें बहुत संतोष प्रदान किया है, अपने लेखन के प्रति आश्वस्ति प्रदान की है..
हृदय तल से आभारी हूँ..
सादर.
आदरणीय रविकर जी
बहुत सुन्दर शब्दों में आपने रचना को अनुमोदित किया.. हार्दिक धन्यवाद
सादर.
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