For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रांची का रेलवे स्टेशन.

फुलमनी ने देखा है

पहली बार कुछ इतना बड़ा .

मिटटी के घरों और

मिटटी के गिरिजे वाले गाँव में

इतना बड़ा है केवल जंगल.

जंगल जिसकी गोद में पली है फुलमनी

कुलांचे मारते मुक्त, निर्भीक. 

पेड़ों के जंगल से

फुलमनी आ गयी

आदमियों के जंगल में ,

जंगल जो लील जाता है 

जहाँ सभ्य समाज का आदमी

घूरता हैं

हिंस्र नज़रों से

सस्ते पोलिस्टर के वस्त्रों को

बेध देने की नियत से ....

फुलमनी बेच दी गयी है

दलाल के हाथों,

जिसने दिया है झांसा

काम का ,

साथ ही देखा है

उसके गुदाज बदन को

फुलमनी दिल्ली में मालिक के यहाँ

करेगी काम,

मालिक तुष्ट करेगा अपने काम

काम से भरेगा

उसका पेट

वह वापस आएगी जंगलों में

जन्म देगी

बिना बाप के नाम वाले बच्चे को.

(फिर कोई दूसरी फूलमनी देखेगी 

पहली बार रांची का रेलवे स्टेशन..) 

... नीरज कुमार ‘नीर’

पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

Views: 943

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on November 2, 2013 at 11:58am

आदरणीय सौरभ जी आपका हार्दिक आभार , आपकी टिप्पणी ने रचना को सार्थक कर दिया .. आपने बहुत ही सुन्दर विवेचना किया ,  जिस तरह से आपने  पिठौरिया, सरायकेला, रातू अथवा टाटीसिलवे का सन्दर्भ लिया उससे यह स्पष्ट है कि आप भली भांति इलाके के भूगोल से परिचित है और स्थानीय सामजिक समस्यायों की भी गहरी समझ आपकी है.

आपकी एक बात बड़ी अच्छी लगी .. कि कसाई की तरह घूरते हुए क्रॉस पहन लेता है ...  क्या आश्चर्य की बात है कि यूरोप या अमेरिका से आया गोरा मिशनरी उन्हें अपना लगता है , रक्षक लगता है जबकि यहाँ का समाज उसे दुश्मन लगता है .. आज निहित स्वार्थ जिसका प्रतिफल अत्यंत क्षणिक रहने वाला है से प्रेरित होकर अपने समाज , देश के लोग काम कर रहे है, परिणाम अत्यंत भयावह होने वाला है .. कुछ भी साबूत नहीं बचेगा ,, ना झूठ फरेब कर कमाई गयी दौलत और ना ही इज्जत , लेकिन कोई समझने को तैयार नहीं.... आपकी टिपण्णी के लिए सादर आभार .. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 2, 2013 at 5:02am

दिक्कू दलालों की बेहयी नज़रों के सापेक्ष रेजाओं की दशा को जिस शिद्दत से यह कविता उभारती हुई आगे बढ़ती है, उस प्रवाह में काव्य-शिल्प का गौण होना कोई अर्थ नहीं रखता.
 
कविता का कथ्य जो कुछ साझा करता है वह कई एक घटना का अतिशयोक्ति रूप मात्र नहीं, बल्कि पिठौरिया, सरायकेला, रातू अथवा टाटीसिलवे जैसे चितकबरे ढंग से विकसित तथा उनके आगे गहन भीतर जंगल की कितनी ही फुलमनियों के ताम्बई छौनों के प्रश्न साझा करता है. वे छौने जो अपनी पीली-भफसायी आँखों से हर दिक्कू को कसाई की तरह घूरते हुए तनमनाये क्रॉस पहन लेते हैं. और/या फिर, बन्दूक उठा लेते हैं.
इन भूमिपुत्र-पुत्रियों की नैसर्गिक निश्छलता को तो कब का पीया जा चुका है. अब जब तलछट की बची सिट्ठियों की कड़वाहट भारी पड़ रही है तो हमारे सभ्य समाज में सबका रोआँ-रोआँ अदबदा रहा है.

नीरज भाई, दिल से बारम्बार बधाई ! आपकी कविता अति संवेदनशील मुद्दे पर सार्थक रूप से मुखर है. दिल से शुभकामनाएँ निकल रही हैं.
सादर

Comment by Neeraj Neer on October 29, 2013 at 9:36am

आदरणीय राजेश मृदु जी आपका धन्यवाद .. 

Comment by Neeraj Neer on October 29, 2013 at 9:36am

आ. प्रदीप कुमार शुक्ला जी आपका हार्दिक आभार . मैं आपकी बातों का ख्याल रखने की कोशिश करूँगा ..

Comment by Neeraj Neer on October 29, 2013 at 9:34am

आदरणीय लडिवाला जी आपका हार्दिक आभार 

Comment by Neeraj Neer on October 29, 2013 at 9:33am

विशाल चर्चित जी आपका आभार 

Comment by Neeraj Neer on October 29, 2013 at 9:33am

आदरणीय सुशिल जोशी जी आपका हार्दिक आभार ..

Comment by Neeraj Neer on October 29, 2013 at 9:32am

आपका आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी जी 

Comment by राजेश 'मृदु' on October 28, 2013 at 2:56pm

फुलमनी के माध्‍यम से उठाया गया प्रश्‍न सामयिक है, इस हकीकत से दो-चार होते हुए भी करने को कुछ दिखता नहीं तथापि कवि कर्म यही कहता है कि समस्‍याएं सामने लाई जाएं और आपने वही किया, आपको साधुवाद इस कृत्‍य के लिए, सादर

Comment by Pradeep Kumar Shukla on October 28, 2013 at 12:46pm

behad prabhaavi rachna Neeraj ji ... atukaant aur chhandmukt shilpshaili main bilkul bhi nahin samajh paata ... shabdon ki thodi aur kanjoosi yadi sambhav ho to avashya karein, aisa mujhe padhte samay laga ... aapko badhai is rachna ke liye

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
18 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
18 hours ago
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। सादर"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मिथिलेश भाई, ओबीओ की परम्परा का क्या ही सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया है आपने ! जय…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा है। सादर"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मेरे कहे को मान देने और अनुमोदन हेतु आभार। सादर"
19 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service