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उजालों की पनाहों में अंधेरे ढूँढ़ लाया है ।

ये दिल नादाँ बुरे हालात मेरे ढूँढ़ लाया है ।

के बीती रात जो यादें भुलाकर सो गया था मै ,

उन्हें जाने कहाँ से फिर सवेरे ढूँढ़ लाया है ।

ये अरमाँ ये तमन्नायें ये ख्वाहिश और ये सपने ,

मेरे चैनों सुकूनों के लुटेरे ढूँढ़ लाया है ।

ख़यालों कल्पनाओं की अज़ब दुनिया में खोया है ,

हकीकत से परे पहलू घनेरे ढूँढ़ लाया है ।

कभी सीखा न था हमने ग़ज़ल गीतों का ये दमखम ,

मेरी जानिब में ग़ालिब के बसेरे ढूढ़ लाया है ।

मौलिक व अप्रकाशित
नीरज  ' प्रेम'

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Comment by वेदिका on November 30, 2013 at 7:48am

वाह! बहुत सुंदर रचना! हार्दिक बधाई!

Comment by Meena Pathak on November 29, 2013 at 6:49pm

बहुत सुन्दर, बधाई स्वीकारे आदरणीय 

Comment by coontee mukerji on November 29, 2013 at 4:36pm

के बीती रात जो यादें भुलाकर सो गया था मै ,

उन्हें जाने कहाँ से फिर सवेरे ढूँढ़ लाया है ।.........बहुत खूब नीरज मिस्रा जी.बहुत सुंदर ख्यालात.

Comment by annapurna bajpai on November 28, 2013 at 8:24pm

सुंदर गजल के लिए बधाई आपको । 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 28, 2013 at 7:49pm

क्या बात है बेहतरीन ग़ज़ल कही है

दिली दाद हाजिर हैं

जय हो

Comment by बृजेश नीरज on November 28, 2013 at 7:41pm

कृपया बहर लिखें! बहर न लिखकर पाठक की परीक्षा न लें!

Comment by Meena Pathak on November 28, 2013 at 5:35pm

बहुत सुन्दर ..बधाई आप को आदरणीय 

Comment by ram shiromani pathak on November 28, 2013 at 12:42am

सुन्दर प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई आपको  ,,,,,सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 27, 2013 at 9:28pm

आदरणीय नीरज " प्रेम " भाई ,!!!!! सुन्दर भावों , विचारों से सजी रचना के लिये आपको बधाई !!!!! अगर आपने ग़ज़ल कही है तो शिल्प के लिहाज़ से कमियाँ है वैसे आपने शीर्षक मे गज़ल नही लिखा है !!!!

Comment by Neeraj Nishchal on November 27, 2013 at 5:05pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी ।

कृपया ध्यान दे...

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