कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।
कि खुद डूबेगा मस्ती में वो तुमको भी डुबो देगा ।
दीवाने को नही मालुम तेरी मुस्कान का जादू ।
जो देखेगा छटा मुख की तो हो जाये न बेकाबू ।
फिर तो होके वो पागल तुम्हारे पीछे दौड़ेगा ।
कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।
ये करुणा से भरी आँखें पिलाती प्रेम का प्याला ।
के उस पर माधुरी तेरी घोल दे कौन सी हाला ।
गिरेगा लड़खड़ाकर जब तुम्हें बदनाम कर देगा ।
कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।
कि होकर प्रेम में पागल तुम्हारे दर पे बैठा है ।
न जाने आज ये क्या क्या इरादा करके बैठा है ।
कि पूरी जब गुज़ारिश हो तभी तेरा द्वार छोड़ेगा ।
कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।
फाड़ता खुद के ही कपड़े नाच दंगल ये करता है ।
कि इसको बाँध कर रखो बड़ी हलचल ये करता है ।
हो इसके सांचे भावों को यहाँ कोई न समझेगा ।
कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।
के इसकी ज़िन्दगी हो तुम तो जीने कि वज़ह दे दो ।
अपने दरबार में मोहन इसे थोड़ी जगह दे दो ।
तुम्हारे रूप के मोती वहाँ जी भर के लूटेगा ।
कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज "प्रेम"
Comment
"समाधि के कई चरण होते हैं. प्रारम्भिक अवस्था के बाद संप्रज्ञात समाधि, असंप्रज्ञात समाधि के आगे अति एकाग्रता की अभिनव अवस्था यानि निर्विकल्प या निर्बीज समाधि जोकि कैवल्य चरण में संभव है."""""
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, समाधि के बारे में इतनी जानकारी नही थी मुझे आप ने जो दी उसके लिए बहुत बहुत
धन्यवाद मैंने समाधि में जाने के प्रयोग किये हैं उनके माध्यम से कुछ अनुभव ज़रूर प्राप्त हुए और इतना ही जाना है अहंकार
जितना शून्य होता जाएगा समाधि उतनी ही गहरी होती जायेगी अहंकार कि मृत्यु ही समाधि है इसलिए गोरख नाथ ने कहा " मरो
हे जोगी मरो " ऐसा मरो कि फिर से मरना ना हो एक बार में ही काम ख़तम करो रोज रोज कि झंझट छोड़ो कबीर दास जी भी इसके समकक्ष कहते हैं
मरते मरते जग मरा , लेकिन मरा न कोय ।
दास कबीरा यूँ मरा , बहुरि न मरना होय ।
और बहुत ज्यादा
प्रेम से पूर्ण होने पर समाधि सहज ही घट ती है इसलिए कहते हैं
खुदा को मत ढूढ़ बंदगी सीख ले
खुदा खुद तुझे ढूढ़ने निकल पड़ेगा
और स्त्रियों के लिए ये बिलकुल सरल बात है इसलिए आपने शायद सुना हो परमहंस जी ने भी स्त्री होने की साधना कि थी
सारे बुद्ध पुरुष स्त्रियों जैसे ही प्रतीत होते हैं परमात्मा द्वारा सृजित स्त्री तत्त्व कि हमे गहनतम खोज अपने भीतर ही करनी चाहिए
"लेकिन, भाईजी, हम तो कविता की बात कर रहे हैं न ! यानि ऐसे किसी तत्त्व के संप्रेषण के शाब्दिक साधन की बात कर रहे हैं.
यदि साधन उचित नहीं होता तो हम ध्यान के ही किस चरण तक पहुँच पाते हैं ? संभव नहीं. यहाँ साधन तो अपना शरीर ही है. यह शरीर एक उचित साधन बना रहे, इसी करण तो योग के अवयवों में यम, नियम, आसन, प्रत्याहार आदि के सोपान हैं !
इसी तरह अपने अनुभवों या वृत्तियों के कई-कई पहलुओं को शाब्दिक रूप से संप्रषित करने के लिएभी साधन का सार्थक होना आवश्यक है. यह साधन यदि कविता या पद्य है तो उसे क्या विधान सम्मत रखना और करना उचित न होगा ?
यही मुझे आपसे निवेदन करना है, भाईजी.
शुभेच्छाएँ""""""""""""""""""""""""""
आपकी इन बातों से पूरी तरह सहमत हूँ कविता लिखते वक्त उसके हर पहलुओं पर ध्यान देना ही होगा
हर तरफ से संतुलन होना चाहिए जिस तरह अध्यात्म कि भी साधना होती है उसी तरह साहित्य की
भी साधना होती है और इन दोनों साधनाओं का आपस में गहरा सम्बन्ध भी है
इस लिए आप देखें तो हमारे देश के अधिकतर आधात्मिक साधक श्रेष्ठतम साहित्यकार भी हुए हैं
फिर वो कबीर और रैदास जैसे अनपढ़े लोग भी क्यों ना हों ,,,,,,,,,
मै इन दोनों साधनाओं को अपने जीवन में समानान्तर ले चलने के लिए पूरी तरह प्रयासरत
रहने कि पूरी कोशिश करूंगा ।
सादर आभार ।
जी, नीरजजी, समाधि के कई चरण होते हैं. प्रारम्भिक अवस्था के बाद संप्रज्ञात समाधि, असंप्रज्ञात समाधि के आगे अति एकाग्रता की अभिनव अवस्था यानि निर्विकल्प या निर्बीज समाधि जोकि कैवल्य चरण में संभव है. बहुत अच्छा लगा, भाईजी, इन विन्दुओं पर बात कर. बहुत-बहुत धन्यवाद. यह अवश्य है कि तोतापुरीजी ठाकुर के गुरु थे.
लेकिन, भाईजी, हम तो कविता की बात कर रहे हैं न ! यानि ऐसे किसी तत्त्व के संप्रेषण के शाब्दिक साधन की बात कर रहे हैं.
यदि साधन उचित नहीं होता तो हम ध्यान के ही किस चरण तक पहुँच पाते हैं ? संभव नहीं. यहाँ साधन तो अपना शरीर ही है. यह शरीर एक उचित साधन बना रहे, इसी करण तो योग के अवयवों में यम, नियम, आसन, प्रत्याहार आदि के सोपान हैं !
इसी तरह अपने अनुभवों या वृत्तियों के कई-कई पहलुओं को शाब्दिक रूप से संप्रषित करने के लिएभी साधन का सार्थक होना आवश्यक है. यह साधन यदि कविता या पद्य है तो उसे क्या विधान सम्मत रखना और करना उचित न होगा ?
यही मुझे आपसे निवेदन करना है, भाईजी.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय पाण्डेय जी समाधि के भी चरण होते हैं
और हर समाधि पहली समाधी जैसी ही अनुभव होती है
जिसको होती है ये बात उसी को पता चलती है
आदरणीय पाण्डेय जी रामकृष्ण को पहली समाधि कहने को तो सोलह वर्ष कि अवस्था में
कुदरत के खूबसूरत नज़ारे को देख कर लगी पर कहते हैं कि वो समाधि की पहली झलक थी
और एक प्रसंग ये भी आता है कि राम कृष्ण जब ध्यान में बैठ ते थे तो काली माँ कि सूरत उनके ध्यान में
आ जाती थी और वो भाव में भर जाते थे और अचेत होकर गिर जाते थे एक बार उनके यहाँ सिद्ध पुरुष
तोतापुरी जी आये उन्होंने अपनी समस्या उनको बतायी उन्होंने कहा ठीक है तुम मेरे सामने ध्यान में बैठना
राम कृष्ण ने पूछा आपको कैसे पता चलेगा कि अब काली माँ मेरे ध्यान में आ गयीं हैं तो तोतापुरी जी ने कहा
जब काली तेरे ध्यान में आती हैं तो तेरे चहरे का रंग ही बदल जाता है तू उसकी फिकर मत कर ,
फिर क्या था बैठे रामकृष्ण ध्यान में जैसे ही राम कृष्ण के ध्यान में काली आयी तोतापुरी जी ने तुरन्त पहचान
लिया और पास पड़े टूटे कांच के टुकड़े से परमहंस के माथे पर चीरा लगा दिया क्यों कि वहाँ पर मनुष्य का स्मृति द्वार होता है
और परमहंस समाधिस्थ हो गए ।
पर कहते हैं
हरि अनंत हरि कथा अनंता ।
कहत सुनत बहु विधि सब संता ।
नीरज भाई, आप लिखना चाहते हैं तो आपके पास सामर्थ्य भी है.
लेकिन पहले इस सामर्थ्य को लायक बनाना होगा. अलबत्ता, पहल आपही को करनी होगी. उसके लिए ओबीओ का मंच उचित स्थान है.
आप किसी टिप्पणी पर अपनी बात कहें. अवश्य कहें. किन्तु सुनी-सुनायी बातों को तथ्य न बनायें.
आपने भाई गणेश जी के कहे पर ठाकुर के प्रसंग को यह कह कर उद्धृत किया है कि यों उनकी पहली समाधि लगी. यह आपने कहाँ पढ़ा ? हो सकता है कि उस प्रसंग में भी उनकी समाधि लगी होगी. ऐसे अनागिनत प्रसंग हैं उनके जीवन में.
आप एक बार फिर से देख लें कि उनकी पहली समाधि कब और किन हालात में लगी थी.
शुभ-शुभ
आदरणीय आशुतोष जी आपका बहुत बहुत आभार ।
चन्दन सा बदन चंचल चितवन
धीरे से तेरा ये मुस्काना ।
मुझे होश ना देना जगवालों
हो जाऊं अगर मै दीवाना ।
आदरणीय निलेश जी आप सुनिये
ये गाना
आपका बहुत बहुत आभार
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
आदरणीय अरुण भाई आप जिस तरह से मुझे प्रोत्साहन देते हैं उसके लिए मै आपके प्रति शुक्र गुज़ार हो पाऊँ कम ही रहेगा
शायद मै इस से बेहतर भी लिख सकता था और मै कोशिश करूँगा कि अपनी भावनाओं को ठीक ठीक अपने शब्दों में सहेज पाऊँ
और भी अच्छा लिख सकूँ आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
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