कैसे सुनाएँ दास्ताँ तरसी निगाह की ।
दौरे ग़मों में किस तरह हमने पनाह की ।
दर्दे सितम प्यार में मिलते रहे हमे ,
चुपचाप सह गए कभी हमने न आह की ।
बीती फकत जो ज़िन्दगी हमने किया नही ,
हमें सजा भी मिल गयी ऐसे गुनाह की ।
एक एक करके हसरतें दम तोड़ती गयीं ,
हमको मिला वही कभी जिसकी न चाह की ।
तूफाँ कभी न आया शायद मेरी डगर ,
उसकी डगर में ज़िन्दगी हमने तबाह की ।
हाले बयान ये जो महफ़िल में कर दिया ,
ताली बजा के सबने तो वाह वाह की ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज 'प्रेम'
Comment
अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें आ नीरज जी...
भाई नीरजजी, आपने तो एकदम से बीस कदम आगे की छलाँग लगा डाली.. !
दिल से बधाई.
सुधीजनों और शुभचिंतकों की बातों और सुझाव का ध्यान रखियेगा.
सादर
आदरणीया राजेश कुमारी जी और आदरणीय वीनस भाई आप दोनों
का तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ मैंने रचना में सुधार लाने की कोशिश की है
सादर
आदरणीय निलेश भाई आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
आदरणीया कुंती जी बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय भण्डारी आपका बहुत बहुत आभार
मैंने कुछ प्रयास किया है सही करने का ।
नीरज जी
हमने भी वाह वाह की i
बहुत ख़ूबसूरत कही i बधाई हो i
नीरज भाई जी धीरे धीरे बात बन रही है बस थोडा सा प्रयास और फिर क्या कहने यह प्रयास बहुत ही सुन्दर है भाई इस पर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
एक एक करके हसरतें दम तोड़ती गयीं ,
हमको मिला वही कभी जिसकी न चाह की
आप के भाव को सलाम
बढ़िया गज़ल! हार्दिक बधाई!!
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