उजालों की पनाहों में अंधेरे ढूँढ़ लाया है ।
ये दिल नादाँ बुरे हालात मेरे ढूँढ़ लाया है ।
के बीती रात जो यादें भुलाकर सो गया था मै ,
उन्हें जाने कहाँ से फिर सवेरे ढूँढ़ लाया है ।
ये अरमाँ ये तमन्नायें ये ख्वाहिश और ये सपने ,
मेरे चैनों सुकूनों के लुटेरे ढूँढ़ लाया है ।
ख़यालों कल्पनाओं की अज़ब दुनिया में खोया है ,
हकीकत से परे पहलू घनेरे ढूँढ़ लाया है ।
कभी सीखा न था हमने ग़ज़ल गीतों का ये दमखम ,
मेरी जानिब में ग़ालिब के बसेरे ढूढ़ लाया है ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज ' प्रेम'
Comment
वाह! बहुत सुंदर रचना! हार्दिक बधाई!
बहुत सुन्दर, बधाई स्वीकारे आदरणीय
के बीती रात जो यादें भुलाकर सो गया था मै ,
उन्हें जाने कहाँ से फिर सवेरे ढूँढ़ लाया है ।.........बहुत खूब नीरज मिस्रा जी.बहुत सुंदर ख्यालात.
सुंदर गजल के लिए बधाई आपको ।
क्या बात है बेहतरीन ग़ज़ल कही है
दिली दाद हाजिर हैं
जय हो
कृपया बहर लिखें! बहर न लिखकर पाठक की परीक्षा न लें!
बहुत सुन्दर ..बधाई आप को आदरणीय
सुन्दर प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई आपको ,,,,,सादर
आदरणीय नीरज " प्रेम " भाई ,!!!!! सुन्दर भावों , विचारों से सजी रचना के लिये आपको बधाई !!!!! अगर आपने ग़ज़ल कही है तो शिल्प के लिहाज़ से कमियाँ है वैसे आपने शीर्षक मे गज़ल नही लिखा है !!!!
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी ।
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