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किसी गली के नुक्कड़ पर
लगा दीजिये
किसी भी प्रसिद्ध नाम का पत्थर
वो उस गली की
पहचान हो जायेगा
वो नाम
सबकी जान हो जायेगा
कभी गलती से
किसी ने अगर उस पत्थर को
तोड़ने की कोशिश भी की तो
दंगाईयों का काम
आसान हो जायेगा
जी हाँ
नेताओं के लिए
चुनाव के निशान
पुजारी के लिए
तिलक के निशान
उनकी जान होते है
उनके व्यवसाय की
पहचान होते हैं
जाने क्योँ
लोग वाह्य आवरण को
अपनी पहचान बनाते हैं
उधार के निशान से
अपने व्यवसाय की
मांग सजाते हैं
भूल जाते हैं
उन निशानों के
मूल रचयिताओं को
जो आज तक
उनकी कुर्बानियों से महान हैं
तभी तो आज तक
उन निशानों की
जन मानस में
अपनी विशिष्ट पहचान है
कुर्सी का आसन ग्रहण करने से
या तन पर वस्त्र धारण करने से
वाह्य पहचान तो बदल जायेगी
लेकिन अगर आचरण ही न बदला तो
यही पहचान
स्वयं को धोखा दे जायेगी
भरी महफ़िल में
किरकिरी करायेगी
किसी भी वस्त्र में फिर
नग्नता न छुप पायेगी
सिर्फ इक बार
निशान में छुपी महानता के अनुरूप
स्वयं को बदल कर देखो
फिर किसी उधार के निशान से
किरकिरी न हो पायेगी
स्वयं का आचरण ही
स्वयं की पहचान बन जायेगी,स्वयं की पहचान बन जायेगी…….

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on December 13, 2013 at 3:18pm

aa.Dr.Prachi Singh jee rachna par aapkee prashansa aur anmol sujhaavon ka haardik aabhaar-kripya sneh bnaaye rakhain


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 13, 2013 at 8:55am

महान व्यक्तित्वों के नाम का छदम आवरण धारण करने वाले बहुरूपियों के लिए सुन्दर सन्देश देती रचना पर बधाई सुशील सरना जी..

इस अतुकांत अभिव्यक्ति में आपने कहीं कहीं तुकांतता का निर्वहन करके प्रवाह देने की कोशिश की है..फिर भी बीच बीच में कथ्य को सपाट बयानी सा भी प्रस्तुत किया गया है..जिससे बचने का प्रयास होना चाहिए.

वैसे ये सब सतत लेखन और अन्य अतुकांत प्रस्तुतियों को पढने से स्वतः ही सधता चला जाता है..

सादर शुभकामनाएं 

Comment by Sushil Sarna on December 11, 2013 at 12:01pm

आदरणीय कुंती मुख़र्जी  जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया हेतु तहे दिल से शुक्रिया  

Comment by coontee mukerji on December 10, 2013 at 10:39pm

बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति.

सादर

Comment by Sushil Sarna on December 10, 2013 at 12:36pm

आदरणीयजितेन्द्र गीत   जी  रचना पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on December 10, 2013 at 12:36pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी  जी  रचना पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on December 10, 2013 at 12:35pm

आदरणीय शिज्जू शकूर जी  रचना पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on December 10, 2013 at 12:30pm

आ. मीना पाठक जी रचना पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 10, 2013 at 8:51am

बहुत बढ़िया , वर्तमान के सच को सुन्दरता से चित्रित करती हुयी कविता बधाई स्वीकारें आदरणीय शुशील जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2013 at 8:01am

आदरणीय , बहुत सुन्दर कविता लिखी है , व्यंग भी है सच्चाई भी !!!! आपको बधाइयाँ !!!!

कृपया ध्यान दे...

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