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लाड़ली चली.. (अन्नपूर्णा बाजपेई)

बाबा की दहलीज लांघ चली

वो पिया के गाँव चली

बचपन बीता माँ के आंचल

सुनहरे दिन पिता का आँगन

छूटे संगी सहेली बहना भैया

मिले दुलारी को अब सईंया

मीत चुनरिया ओढ़ चली  

बाबा की ................

माँ की सीख पिता की शिक्षा

दुलार भैया का भाभी की दीक्षा

सखियों का स्नेह लाड़ बहना का

वो रूठना मनाना खेल बचपन का

भूल सब मुंह मोड चली

वो पिया के ...............

परब त्योहार हमको  बुलाना

कभी तुम न मुझको भुलाना

साजन संग मै आऊँगी

खुशियाँ संग ले आऊँगी

वो लाड़ली चली

बाबा की ..................

 

अप्रकाशित एवं मौलिक         

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Comment by annapurna bajpai on December 25, 2013 at 6:20pm

आ0 कुंती दीदी  आपका आभार । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 25, 2013 at 2:05pm

आदरणीया बेहद सुन्दर मधुर गीत खूबसूरत दृश्य उकेरा है हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति आपको बहुत बहुत बधाई.

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 25, 2013 at 12:04pm

एक बिटिया बचपन की सारी खुशियाँ छोड़ बिदा हो जाती है नये सपने लिए। बधाई आ० अन्नपूर्णा जी इस सुंदर रचना के लिए।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 25, 2013 at 11:49am

सुंदर मर्मस्पर्शी रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीया अन्नपूर्णा जी

Comment by vijay nikore on December 25, 2013 at 6:15am

सुन्दर मार्मिक अभिव्यक्ति। बधाई।

Comment by coontee mukerji on December 24, 2013 at 10:27pm

दिल को छू देने वाली रचना.हार्दिक बधाई.

Comment by annapurna bajpai on December 24, 2013 at 5:26pm

आपका हार्दिक आभार आ0 बागी जी । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 24, 2013 at 5:09pm

बहुत ही सुन्दर गीत हुआ है, विदाई का दृश्य आखों के सामने आ जाता है, अंतिम बंद में फेरों के पहले दिलाये जाने वाले वचन याद आ गए, बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा वाजपेयी जी .

Comment by annapurna bajpai on December 24, 2013 at 4:35pm

आ0 श्याम नारायण जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on December 24, 2013 at 4:32pm

आ0 डॉ गोपाल नारायण जी आपका हार्दिक आभार । 

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