कुछ इस तरह पुकारा तुमने
कदम भी मेरे लगे बहकने
कुछ इस .........
दामिनी दमक उठी नैनो मे
सरगम छनक उठी साँसों मे
हृद वीणा सी झंकृत कर दी
जागे से लगने लगे सपने
कुछ .......................
अन्तर्भावों की सुरवलियों मे
उद्गारों की हारावलियों मे
शब्द सुशोभित सज्जित कर दी
मन-कानन सब लगे महकने
कुछ .....................
अप्रकाशित एवं मौलिक
(संशोधित रचना)
Comment
आदरणीय सौरभ जी एवं आदरणीय बृजेश जी आपके कथन को ध्यान मे रखते हुए रचना मे कुछ संशोधन किए है आशा है अब आपको रचना पसंद आएगी । सादर !
प्रिय महिमा बहुत आभार आपका ।
भाई बृजेश जी के कहे से मैं सहमत हूँ. सादर
आदरणीया अन्नपूर्णा जी बहुत ही सुंदर प्रस्तुति .. हार्दिक बधाई आपको सादर
अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!
शायद आपने गीत लिखने का प्रयास किया था लेकिन आपने पर्याप्त समय रचना को नहीं दिया!
सादर!
आ0 अरुण जी आपका हार्दिक आभार ।
आ0 कुंती दीदी आपको रचना अच्छी लगी आपका हार्दिक आभार ।
आदरनीय विजय निकोर जी आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीया अन्नपूर्णा जी बहुत ही सुन्दर प्रेम पगी रचना बधाई स्वीकारें.
बिजली सी चमक उठी नैनो मे
सरगम सी बज उठी साँसों मे
मानो हृदय की वीणा झंकृत कर दी......क्या बात है अन्नपूर्णा जी.मन बाग- बाग हो गया.
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