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मिसरा-तरह //आखिर तुमने अपना ही नुकसान किया // पर आधारित एक तरही ग़ज़ल

22- 22- 22- 22- 22- 2

सच्चाई को जब अपना ईमान किया

सारी दुनिया को उसने हैरान किया

 

मुल्क़परस्ती का जज़्बा अब आम नहीं

किसने अपना सब यूँ ही क़ुर्बान किया

 

चुन-चुन के ग़ज़लों को बाँधा तुमने यूँ

बिखरे औराक़ सहेजे, दीवान किया

 

छोटी- छोटी बातों में खुशियाँ ढूँढी

अपने छोटे से घर को ऐवान किया

 

मायूस हुआ तेरी तीखी बातों से

आईना दिखलाया ये एहसान किया

 

उम्मीदों के फूल खिले थे सहरा में

आग लगा क्यूँ उसको फिर वीरान किया

 

हाथ न आया लोगों के कोई इल्ज़ाम

बस मेरी मर्गे वफा का एलान किया

 

छोटे से इक झोंके को जाने कैसे

काबू करके उसने यूँ तूफान किया

 

रात गुज़ारा तन्हा मैंने आँखों में

तेरी यादों को अपना मेहमान किया

 

औराक़ =पन्ने, दीवान = किसी शायर के ग़ज़लों की किताब, ऐवान = महल

मर्गे वफा = वफा की मौत

 

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 7, 2014 at 7:04am

आदरणीय शिज्जू भाई सदर अभिवादन 

आपकी यह ग़ज़ल मुझे आपकी तमाम अन्य ग़ज़लों से जुदा दिखी .

उम्मीदों के फूल खिले थे सहरा में

आग लगा क्यूँ उसको फिर वीरान किया   

यह शेर बहुत भ गया .

इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई .

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 6, 2014 at 10:49pm

सुंदर तरही गज़ल की बधाई , शिज्जु भाई॥ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 8:34pm

आदरणीय डॉ आशुतोष सर रचना को मान देने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 8:33pm

भाई अमित जी रचना की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 8:32pm

आदरणीया कुन्ती जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 8:32pm

आदरणीय गिरिराज सर हमेशा की तरह आपकी उत्साही प्रतिक्रिया के लिये तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 8:31pm

आदरणीय राज बुन्देली सर रचना को मान देने के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 8:30pm

आदरणीया सरिता जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 6, 2014 at 6:05pm

आदरणीय शिज्जू जी ..आपकी यह ग़ज़ल मुझे आपकी तमाम अन्य ग़ज़लों से जुदा दिखी ..बहर भी नए पन में ..चुनिन्दा शब्द अपने यथोचित स्थान पर ..आपके इस प्रयोग पर मेरी तरफ से हार्दिक बधाई 

हाथ न आया लोगों के कोई इल्ज़ाम

बस मेरी मर्गे वफा का एलान किया

छोटी- छोटी बातों में खुशियाँ ढूँढी

अपने छोटे से घर को ऐवान किया....सबसे दिलकश बात जो अब ढूंढें नहीं मिलती .....

सच्चाई को जब अपना ईमान किया

सारी दुनिया को उसने हैरान किया...

 

मुल्क़परस्ती का जज़्बा अब आम नहीं

किसने अपना सब यूँ ही क़ुर्बान किया.....ये दोनों शेर भी लाजबाब हैं ..दोनों कार्य अत्यत्न दुष्कर भी ..बहुत बहुत बधाई ..

Comment by अमित वागर्थ on January 6, 2014 at 6:02pm

उम्मीदों के फूल खिले थे सहरा में

आग लगा क्यूँ उसको फिर वीरान किया    वाह वाह क्या बात है

इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई शिज्जू भाई

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