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मात्रिक छंद

जो रस्मों को मन से माने, पावन होती प्रीत वही तो!

जीवन भर जो साथ निभाए, सच्चा होता मीत वही तो!

 

रूढ़ पुरानी परम्पराएँ, मानें हम, है नहीं ज़रूरी।

जो समाज को नई दिशा दे, प्रचलित होती रीत वही तो!

 

मंदिर-मंदिर चढ़े चढ़ावा, भरे हुओं की भरती झोली।

जो भूखों की भरे झोलियाँ, होता कर्म पुनीत वही तो!

 

ऐसा कोई हुआ न हाकिम, जो जग में हर बाज़ी जीता,

बाद हार के जो हासिल हो, सुखदाई है जीत वही तो!

 

भाव बिना है कविता फीकी, बिना सुरीले बोल, तराने।

जो तन-मन को करे तरंगित मधुरिम है संगीत वही तो!

 

यूँ तो मिलती नेक नसीहत, भूलें जो बीता दुखदाई,

संग जिये पर जिसके पल-पल, होता याद अतीत वही तो!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Vindu Babu on January 23, 2014 at 4:32am

हमेशा की तरह बहुत  सुंदर प्रस्तुति आदरणीया।

आपको बहुतबधाई इस सार्थक गज़ल हेतु।

शुभ शुभ

Comment by Sarita Bhatia on January 22, 2014 at 9:08pm

आदरणीय कल्पना दी संदेशात्मक गजल के लिए हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 22, 2014 at 9:00pm

आदरणीया कल्पना जी , सुन्दर सन्देश साझा करती आपकी गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 22, 2014 at 7:05pm

आदरणीया कल्पना जी बहुत अच्छी संदेश परक ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल पर

Comment by बसंत नेमा on January 22, 2014 at 4:58pm

रूढ़ पुरानी परम्पराएँ, मानें हम, है नहीं ज़रूरी।

जो समाज को नई दिशा दे, प्रचलित होती रीत वही तो!   बहुत सुन्दर रचना आदणीया जी बधाई आप को 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 22, 2014 at 3:26pm

आदरणीया कल्पना जी वाह प्रत्येक अशआर ताजगी भरे हुए हैं बेहद शानदार संदेशप्रद ग़ज़ल कही है आपने दिली मुबारकबाद कुबूल फरमाएं.

Comment by Shyam Narain Verma on January 22, 2014 at 10:58am
सुंदर भाव से संजोयी रचना पर बधाई स्वीकारें .....
Comment by vandana on January 22, 2014 at 6:44am


जो समाज को नई दिशा दे, प्रचलित होती रीत वही तो!

सदैव की भांति साथक और सुन्दर संदेशयुक्त  आदरणीया कल्पना मैम

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