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ग़ज़ल : परों को खोलकर अपने, जो किस्मत आजमाते हैं

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

 

गगन का स्नेह पाते हैं, हवा का प्यार पाते हैं

परों को खोलकर अपने, जो किस्मत आजमाते हैं

 

फ़लक पर झूमते हैं, नाचते हैं, गीत गाते हैं

जो उड़ते हैं उन्हें उड़ने के ख़तरे कब डराते हैं

 

परिंदों की नज़र से एक पल गर देख लो दुनिया

न पूछोगे कभी, उड़कर परिंदे क्या कमाते है

 

फ़लक पर सब बराबर हैं यहाँ नाज़ुक परिंदे भी

लड़ें गर सामने से तो विमानों को गिराते हैं

 

जमीं कहती, नई पीढ़ी के पंक्षी भूल मत जाना

परिंदे शाम ढलते घोसलों में लौट आते हैं

------------

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 2, 2014 at 6:52pm

बहुत बहुत शुक्रिया नादिर ख़ान साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 2, 2014 at 6:51pm

बहुत बहुत शुक्रिया गिरिराज भंडारी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 2, 2014 at 6:51pm

बहुत बहुत धन्यवाद rajesh kumari जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 2, 2014 at 6:51pm

शुक्रिया Sarita Bhatia जी

Comment by annapurna bajpai on March 1, 2014 at 1:34pm

वाह ! ! बहुत खूब , शानदार गजल के लिए हार्दिक बधाई । 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 1, 2014 at 12:03am

जमीं कहती, नई पीढ़ी के पंक्षी भूल मत जाना

परिंदे शाम ढलते घोसलों में लौट आते हैं...............बहुत खूब ,कमाल का शेर हुआ

बेहद उम्दा गजल आदरणीय धर्मेन्द्र जी, आपको हार्दिक बधाई

Comment by नादिर ख़ान on February 25, 2014 at 11:24pm

जमीं कहती, नई पीढ़ी के पंक्षी भूल मत जाना

परिंदे शाम ढलते घोसलों में लौट आते हैं ...

सही  कहा आदरणीय धर्मेंद्र जी आँखें खुली हों तो हर किसी से सीख मिल जाती है फिर चाहे परिंदे हो या चिटियाँ  हमें कुछ न कुछ सीखा जाते हैं ।

आपकी उम्दा नज़र और शानदार रचना के लिए ढेरों बधाइयाँ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 25, 2014 at 11:13pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , लाजवाब गज़ल के लिये आपको दिली बधाइयाँ ॥

Comment by कल्पना रामानी on February 25, 2014 at 10:59pm

वाह, वाह!! बहुत ही शानदार गजल, हर शे'र लाजवाब। बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय धर्मेन्द्र जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 25, 2014 at 4:36pm

अजीब इत्तेफाक है आज मैंने भी एक रचना परिंदे  के ऊपर लिखी है (दो तीन दिन बाद पोस्ट करुँगी )और आपने ग़ज़ल लिखी है आपके परिंदे बहुत अच्छे संस्कारी हैं और मेरे ?...खैर वो पढ़ लेना ,फिलहाल आपकी ग़ज़ल की बात करूँ तो इतनी सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने की जितनी तारीफ करूँ कम होगी हर शेर शानदार है दिली दाद कबूलें 

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