For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- जिंदगी कितनी हंसीं है आओ आकर देख लो

जिंदगी कितनी हंसीं है आओ आकर देख लो
एक पिंजराबंद पंछी को उड़ाकर देख लो

तुम हमें समझा रहे हो बेवफाई का सबब?
फैसला हो जायेगा नज़रें मिलाकर देख लो

मंजिलें जब पास हों तब और करती हैं भ्रमित
जो न हो विश्वास क़दमों को बढ़ा कर देख लो

हम निहत्थे हैं मगर माँ की दुवाएँ साथ हैं
जीत किसकी, हार किसकी आज़मा कर देख लो

माँ मुझे मालूम है हालात कुछ अच्छे नहीं
हौसला हो जायेगा गर मुस्कुरा कर देख लो

लोग मुझसे पूछते हैं शायरी कैसे लिखें
दर्द को पन्ने पे रखकर गुनगुना कर देख लो

- मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 891

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ajay Agyat on March 2, 2014 at 1:59pm

umda

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2014 at 10:36am

मंजिलें जब पास हों तब और करती हैं भ्रमित
जो न हो विश्वास क़दमों को बढ़ा कर देख लो.........यह शेर बहुत खास हुआ

बेहद खुबसूरत गजल आदरणीय अनुराग जी, हार्दिक बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 2, 2014 at 9:31am

आदरनीय अनुराग भाई , बहुत खूब सूरत ग़ज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ , आदरणीय मतला बहुत पसन्द आया , आपको बधाइयाँ ॥

जिंदगी कितनी हंसीं है आओ आकर देख लो
एक पिंजराबंद पंछी को उड़ाकर देख लो ------ बहुत खूब ॥ 

Comment by Anurag Anubhav on March 2, 2014 at 9:19am
आदरणीय सरिता भाटिया जी, मैं स्वयं ग़ज़ल का बिलकुल नया विद्यार्थी हूँ.. अतः अगर कहीं भूल हो गयी हो तो मुझे अवगत करें... मेरे मुताबिक मैंने ये ग़ज़ल 2122/2122/2122/212 पर लिखी है... आगे सभी जानकार मेरा मार्गदर्शन करें... धन्यवाद
Comment by बृजेश नीरज on March 2, 2014 at 8:06am

बहुत अच्छी ग़ज़ल है! आपको हार्दिक बधाई!

यदि बहर का जिक्र किया गया होता तो हम जैसे नव-विद्यार्थियों को भी शिल्प समझने में आसानी होती.

सादर!

Comment by atul kushwah on March 1, 2014 at 10:33pm

जिंदगी कितनी हंसीं है आओ आकर देख लो
एक पिंजराबंद पंछी को उड़ाकर देख लो..
बहुत खूबसूरत, बधाई आदरणीय अनुराग जी।

Comment by कल्पना रामानी on March 1, 2014 at 9:10pm

वाह, वाह!!हर शे'र लाजवाब! मतला विशेष पसंद आया बहुत ही सुंदर गजल। आदरणीय अनुराग जी,बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by Sarita Bhatia on March 1, 2014 at 8:35pm

वाह ,बहुत बधाई पर आदरणीय गजल शायद बह्र में नहीं 

Comment by annapurna bajpai on March 1, 2014 at 7:29pm


हम निहत्थे हैं मगर माँ की दुवाएँ साथ हैं
जीत किसकी, हार किसकी आज़मा कर देख लो

माँ मुझे मालूम है हालात कुछ अच्छे नहीं
हौसला हो जायेगा गर मुस्कुरा कर देख लो...................... बहुत खूब , हर अशर कमाल का हुआ है । आ0 अनुराग जी दाद कुबूल फरमाए । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service