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२ २ १ १ / २ २ १ १ / २ २ १ २ / १ २  
भावों से पले शब्द तो वो छंद हो गए 
कान्हा जो रहे पाल बाबा नंद हो गए 
.
छूकर के गया कृष्ण तो ये मन भी कह उठा 
फूलों से मिले शूल तो मकरंद हो गए
.
आखों को लगे छू रहा है आज तन बदन  
दर्द ऐ दिल की आज तो वो रंद हो गए 
.
नफरत से भरे ज्ञान की दीवार को गिरा  
हर भोर ख़ुशी गा रही आनंद हो गए 
.
राधा से मिले कृष्ण अधर पे है बांसुरी 
फिर रास रचाने को रजामंद हो गए  
.
जख्मों पे दिए जख्म उन्हें पीर ना हुई   
जाने जो लगे हम तो फिकरमंद हो गए 
.
आशीष ( सागर सुमन ) 
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ashish Srivastava on May 15, 2014 at 2:17pm

coontee mukerji: Aabhaar 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 14, 2014 at 7:33am
नफरत से भरे ज्ञान की दीवार को गिरा  
हर भोर ख़ुशी गा रही आनंद हो गए............बहुत सुंदर, बधाई आपको आदरणीय आशीष जी
Comment by Meena Pathak on May 13, 2014 at 10:36pm

बहुत सुन्दर ... बधाई 

Comment by coontee mukerji on May 13, 2014 at 4:13pm
नफरत से भरे ज्ञान की दीवार को गिरा  
हर भोर ख़ुशी गा रही आनंद हो गए .....अच्छे विचार है. हार्दिक बधाई.
.
Comment by Ashish Srivastava on May 13, 2014 at 2:48pm

shaym ji aabhaar 

Comment by Shyam Narain Verma on May 13, 2014 at 2:37pm
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ....हार्दिक बधाई .....

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