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छप्पय छंद
बेटी होना पाप, त्रास में जीवन सारा ।
जन्म पूर्व ही घात, उसे कितनों ने मारा ।।
कंपित होती सांस, वायु है दूषित सारी ।
छेड़ छाड़ हर पाद, नगर गांव बलात्कारी ।।
गली गली में भेडि़या, नोचें बेटी मांस को ।
जीवित होकर लाश हैं, बेटी सह  इस त्रास को ।।
.................
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Meena Pathak on June 5, 2014 at 10:25pm

क्या कहें .. बहुत ही दुखद और शर्मनाक 

रचना हेतु बधाई 

Comment by Sushil Sarna on June 5, 2014 at 7:13pm

एक कड़वी सच्चाई  जिसे आपने बहुत मार्मिकता से प्रस्तुत किया है   .... हार्दिक बधाई इस सृजन हेतु। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2014 at 5:14pm

अत्यंत मार्मिक ...

Comment by coontee mukerji on June 5, 2014 at 5:01pm

बहुत दुखद....

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