पहनावा ही बोलता, लोगों का व्यक्तित्व ।
वस्त्रों के हर तंतु में, है वैचारिक स्वरितत्व ।।
है वैचारिक स्वरितत्व, भेद मन का जो खोले ।
नग्न रहे जब सोच, देह का लज्जा बोले ।
फैशन का यह फेर, नग्नता का है लावा ।
आजादी के नाम, युवा का यह पहनावा ।।
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मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on October 23, 2017 at 11:00pm — 4 Comments
एक-दूजे के पूरक होकर
यथावत रखें संसार
पक्ष-विपक्ष राजनीति में
जनता के प्रतिनिधि
प्रतिवाद छोड़ सोचे जरा
एक राष्ट्र हो किस विधि
अपने पूँछ को शीश कहते
दिखाते क्यों चमत्कार
हरे रंग का तोता रहता
जिसका लाल रंग का चोंच
एक कहता बात सत्य है
दूजा लेता खरोच
सत्य को ओढ़ाते कफन
संसद के पहरेदार
सागर से भी चौड़े हो गये
सत्ता के गोताखोर
चारदीवारी के पहरेदार ही
निकले कुंदन…
Added by रमेश कुमार चौहान on February 23, 2017 at 6:00pm — 3 Comments
Added by रमेश कुमार चौहान on November 4, 2016 at 2:57pm — 3 Comments
(चवपैया छंद-10, 8, 12 मात्रा के तीन -तीन चरणों के कुल चार पद , प्रत्येक पद के प्रथम एवं द्वितीय चरण मं समतुक एवं दो-दो पद में 1122 मात्रा या पदांत 2 मात्रा के के साथ समतुक पर हो)
हे आदि भवानी, जग कल्याणी, जन मन के हितकारी ।
माँ तेरी ममता, सब पर समता, जन मन को अति प्यारी ।।
हे पाप नाशनी, दुख विनाशनी, जग से पीर हरो माँ ।
आतंकी दानव, है क्यों मानव, जन-मन विमल करो माँ ।।
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 25, 2016 at 7:30am — 2 Comments
भाषा यह हिन्दी, बनकर बिन्दी, भारत माँ के, माथ भरे ।
जन-मन की आशा, हिन्दी भाषा, जाति धर्म को, एक करे ।।
कोयल की बानी, देव जुबानी, संस्कृत तनया, पूज्य बने ।
क्यों पर्व मनायें,क्यों न बतायें, हिन्दी निशदिन, कंठ सने ।।
Added by रमेश कुमार चौहान on September 14, 2016 at 12:00pm — 5 Comments
सावन
सूखी रह गई,
सूखे भादो मास
विरहन प्यासी धरती कब से,
पथ तक कर हार गई
पनघट पूछे बाँह पसारे,
बदरा क्यों मार गई
पनिहारिन
भी पोछती
अपनी अंजन-सार
रक्त तप्त अभिसप्त गगन यह,
निगल रहे फसलों को
बूँद-बूँद कर जल को निगले,
क्या दें हम नसलों को
धूँ-धूँ कर
अब जल रही
हम सबकी अँकवार
कब तक रूठी रहेगी हमसे,
अपना मुँह यूॅं फेरे
हम तो तेरे द्वार खड़े हैं
हृदय हाथ में…
Added by रमेश कुमार चौहान on September 14, 2016 at 11:27am — 3 Comments
सौंधी सौंधी मिट्टी महके
चीं-चीं चिड़िया अम्बर चहके ।
बाँह भरे हैं जब धरा गगन
बरगद पीपल जब हुये मगन
गांव बने तब एक निराला
देख जिसे ईश्वर भी बहके ।
ऊँची कोठी एक न दिखते
पगडंडी पर कोल न लिखते
है अमराई ताल तलैया,
गोता खातीं जिसमें अहके ।
शोर शराबा जहां नही है
बतरावनि ही एक सही है
चाचा-चाची भइया-भाभी
केवल नातेदारी गमके ।
सुन-सुन कर यह गाथा
झूका रहे नवाचर माथा
चाहे कहे…
Added by रमेश कुमार चौहान on September 12, 2016 at 10:00pm — 4 Comments
मातृभूमि के पूत सब, प्रश्न लियें हैं एक ।
देश प्रेम क्यों क्षीण है, बात नही यह नेक ।।
नंगा दंगा क्यों करे, किसका इसमें हाथ ।
किसको क्या है फायदा, जो देतें हैं साथ ।।
किसे मनाने लोग ये, किये रक्त अभिषेक । मातृभूमि के पूत सब
आतंकी करतूत को, मिलते ना क्यों दण्ड ।
नेता नेता ही यहां, बटे हुये क्यों खण्ड़ ।।
न्याय न्याय ना लगे, बात रहे सब सेक । मातृभूमि के पूत सब
गाली देना देश को, नही राज अपराध ।
कैसे कोई कह गया, लेकर मन की…
Added by रमेश कुमार चौहान on February 29, 2016 at 7:30am — 4 Comments
Added by रमेश कुमार चौहान on January 24, 2016 at 10:14am — 4 Comments
कैसे हम आजाद हैं, है विचार परतंत्र ।
अपने पन की भावना, दिखती नहीं स्वतंत्र ।।
भारतीयता कैद में, होकर भी आजाद ।
अपनों को हम भूल कर, करते उनको याद ।
छुटे नही हैं छूटते, उनके सारेे मंत्र । कैसे हम आजाद हैं....
मुगल आक्रांत को सहे, सहे आंग्ल उपहास ।
भूले निज पहचान हम, पढ़ इनके इतिहास ।।
चाटुकार इनके हुये, रचे हुये हैं तंत्र । कैसे हम आजाद हैं...
निज संस्कृति संस्कार को, कहते जो बेकार ।
बने हुये हैं दास वो, निज आजादी हार…
Added by रमेश कुमार चौहान on August 31, 2015 at 10:00am — 6 Comments
अटल नियम है सृष्टि की, देखें आंखे खोल ।
प्राणी प्राणी एक है, आदमी पिटे ढोल ।।
इंसानी संबंध में, अब आ रही दरार ।
साखा अपने मूल से, करते जो तकरार ।।
खग-मृग पक्षी पेड़ के, होते अपने वंश ।
तोड़ रहे परिवार को, इंशा देते दंश ।।
कई जाति अरू वर्ण के, फूल खिले है बाग ।
मिलकर सब पैदा करे, इक नवीन अनुराग ।।
वजूद बगिया के बचे, हो यदि नाना फूल ।
सब अपने में खास है, सबको सभी कबूल ।।
पत्ते छोड़े पेड़ जो, हो…
ContinueAdded by रमेश कुमार चौहान on April 25, 2015 at 2:54pm — 6 Comments
1.
पावन पवित्र प्रेम को, करते क्यों बदनाम ।
स्वार्थ मोह में क्यों भला, देकर प्रेमी जान ।।
2.
एक प्रश्न मैं पूछती, देना मुझे जवाब ।
छोरा छोरी क्यो भला, करते प्रेम जनाब ।।
3.
तेरा सच्चा प्यार है, मेरा है बेकार ।
माॅ की ममता क्यों भला, होती है लाचार ।।
4.
सोलह हजार आठ में, मिले न राधा नाम ।
सारा जग फिर क्यो भला, जपते राधे श्याम ।।
5.
मातु पिता के बात पर, जिसने किया विवाह ।
होते उनके भी प्रबल, इक दूजे…
Added by रमेश कुमार चौहान on February 25, 2015 at 9:30pm — 8 Comments
कुलषित संस्कृति हावी तुम पर, बांह पकड़ नाच नचाये ।
लोक-लाज शरम-हया तुमसे, अब बरबस नयन चुराये ।।
किये पराये अपनो को तुम, गैरों से आंख मिलाये ।
भौतिकता के फेर फसे तुम, घर अपने आग लगाये ।।
पैर धरा पर धरे नही तुम, उड़े गगन पंख पसारे ।
कभी नही सींचे जड़ पर जल, नीर साख पर तुम डारे ।
नीड़ नोच कर तुम तो अपने, दूजे का नीड़ सवारे ।
करो प्रीत अपनो से बंदे, कह ज्ञानी पंडित हारे ।।
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on February 5, 2015 at 11:39pm — 4 Comments
प्राण निछावर को तुम तत्पर,
भारत के प्रिय वीर सिपाही।
दुश्मन को ललकार अड़े तुम
अंदर बाहर छोड़ कुताही ।।
सर्द निशा अरू धूप सहे तुम,
देश अखण्ड़ सवारन चाही ।
मस्तक उन्नत देश किये तब,
मंगल जीवन लोग निभाही ।।
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on January 2, 2015 at 10:09pm — 10 Comments
मैं चौक गया
आईना देखकर
परख कर
अपनी परछाई
मुख में झुर्री
काली काली रेखाएं
आंखों के नीचे
पिचका हुआ गाल
हाल बेहाल
सिकुड़ी हुई त्वचा
कांप उठा मैं
नही नही मैं नही
झूठा आईना
है मेरे पिछे कौन
सोचकर मैं
पलट कर देखा
चौक गया मैं
अकेले ही खड़ा हूॅं
काल ग्रास होकर ।
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on December 31, 2014 at 10:30am — 8 Comments
क्यों भूले तुम ?
अपनी मातृभाषा
माॅं का आॅंचल
कभी खोटा होता है ?
खोटी तेरी किस्मत ।
2.
दूर के ढोल
मधुर लगे बोल
नभ में सूर्य
धरातल से छोटा
बहुत सुहाना है ।
3.
आतंकवाद
धार्मिक कट्टरता
नही सीखाता
बाइबिल कुरान
हिन्द का गीता पुराण ।
4.
स्वीकार करें
दूसरो का सम्मान
क्यों थोपते हो ?
पंथ धर्म विचार
सभी खुद नेक हैं ।
5.
गरज रहा
आई.एस.आई.ई
सचेत रहे
हिन्दू मुस्लिम एक
एक…
Added by रमेश कुमार चौहान on December 15, 2014 at 9:30pm — 7 Comments
Added by रमेश कुमार चौहान on November 2, 2014 at 9:35pm — 9 Comments
छन्न पकैया छन्न पकैया, काले धन का हल्ला ।
चोरों के सरदारों ने जो, भरा स्वीस का गल्ला ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, कौन जीत अब लाये ।
चोर चोर मौसेरे भाई, किसको चोर बताये ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, सपना बहुत दिखाये ।
दिन आयेंगे अच्छे कह कह, हमको तो भरमाये ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, धन का लालच छोड़ो ।
होते चार बाट चोरी धन, इससे मुख तुम मोड़ो ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, काले गोरे परखो ।
कालों को दो काला पानी, बात बना मत टरको ।। …
Added by रमेश कुमार चौहान on October 29, 2014 at 9:30pm — 6 Comments
एक दीप तुम द्वार पर, रख आये हो आज ।
अंतस अंधेरा भरा, समझ न आया काज ।।
आज खुशी का पर्व है, मेटो मन संताप ।
अगर खुशी दे ना सको, देते क्यों परिताप ।।
पग पग पीडि़त लोग हैं, निर्धन अरू धनवान ।
पीड़ा मन की छोभ है, मानव का परिधान ।।
काम सीख देना सहज, करना क्या आसान ।
लोग सभी हैं जानते, धरे नही नादान ।।
मन के हारे हार है, मन से तू मत हार ।
काया मन की दास है, करे नही प्रतिकार ।।
बात ज्ञान की है बड़ी, कैसे दे अंजाम ।
काया अति सुकुमार…
Added by रमेश कुमार चौहान on October 24, 2014 at 9:35pm — 8 Comments
मां भारती की शान को, अस्मिता स्वाभिमान को,
अक्षुण सदा रखते, सिपाही कलम के ।
सीमा पर छाती तान, हथेली में रखे प्राण,
चैकस हो सदा डटे, प्रहरी वतन के ।
चांद पग धर कर, माॅस यान भेज कर,
जय हिन्द गान लिखे, विज्ञानी वतन के ।
खेल के मैदान पर, राष्ट्र ध्वज धर कर,
लहराये नभ पर, खिलाड़ी वतन के ।
हाथ में कुदाल लिये, श्रम-स्वेद भाल लिये,
श्रम के गीत गा रहे, श्रमिक वतन के…
Added by रमेश कुमार चौहान on October 5, 2014 at 2:00pm — 2 Comments
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