मैं चौक गया
आईना देखकर
परख कर
अपनी परछाई
मुख में झुर्री
काली काली रेखाएं
आंखों के नीचे
पिचका हुआ गाल
हाल बेहाल
सिकुड़ी हुई त्वचा
कांप उठा मैं
नही नही मैं नही
झूठा आईना
है मेरे पिछे कौन
सोचकर मैं
पलट कर देखा
चौक गया मैं
अकेले ही खड़ा हूॅं
काल ग्रास होकर ।
.......................
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय रमेश भाई , बढ़िया रचना हुई है , रचना के भाव भे बहुत सुन्दर लगे , हार्दिक बधाई ॥
आप सभी का इस उत्साह वर्धन के लिये सादर आभार
आदरणीय रमेश चौहान जी , विधान का बख़ूबी निर्वहन करते हुये ,भावों को बड़े जतन के साथ सहेजा है आपने |अति सुन्दर |सादर अभिनन्दन
आदरणीय रमेश भैया बहुत अच्छी भावपूर्ण रचना है बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय रमेश चौहान जी,सुन्दर प्रयास ,हार्दिक बधाई !
सबका आने वाला वक्त ,आईना बता देता है यानि आत्म-अवलोकन से
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