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भाषा यह हिन्द (त्रिभंगी छंद)

भाषा यह हिन्दी, बनकर बिन्दी, भारत माँ के, माथ भरे ।
जन-मन की आशा, हिन्दी भाषा, जाति धर्म को, एक करे ।।
कोयल की बानी, देव जुबानी, संस्कृत तनया, पूज्य बने ।
क्यों पर्व मनायें,क्यों न बतायें, हिन्दी निशदिन, कंठ सने ।।

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 15, 2016 at 7:25pm
आदरणीय श्री रमेश कुमार चौहान जी सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई ।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 15, 2016 at 4:37pm

कोयल की बानी, देव जुबानी, संस्कृत तनया, पूज्य बने । - ये पंक्ति बहुत सुंदर लगी  | वाह  ! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 4:15pm

आदरणीय रमेश चौहान जी,  आपका छन्दशास्त्र के प्रति आग्रही होना मुग्ध करता है. परन्तु यह भी सही है कि आप वर्तनी या भाषा व्याकरण के प्रति तनिक सुस्त रहा करते हैं. अब इसी प्रस्तुति को देखिये --

भाषा यह हिन्दी, बनकर बिन्दी, भारत मां के, माथ भरे ।..............  मां  या माँ ?
जन मन की आषा, हिन्दी भाषा, जाति धर्म को, एक करे ।।............ आषा या आशा ?.. जन मन के बीच योजक चिह्न (-) आयेगा.
कोयल की बानी, देव जुबानी, संस्कृत तनया, पूज्य बने ।.............. 
एक दिवस ही क्यों, पर्व लगे ज्यों, निषदिन निषदिन, कंठ सने ।। ..... प्रथम चरण में लय-भंग की स्थिति है. त्रिकल का संयोजन सही नहीं है. आप ’एक’ जैसे त्रिकल से प्रारम्भ कर उलझ गये हैं. दूसरी बात, ’निषदिन’ कौन सा शब है ? शुद्ध शब्द है ’निशदिन’ 

त्रिभंगी छन्द के नियम को यदि ध्यान से देखिये, तो यह अवश्य लिखा होगा, कि प्रथम चरण का प्रारम्भ शुद्ध द्विकल से करना चाहिए.

बहरहाल इस अभ्यास को मैं पूर्ण समर्थन देता हूँ.

एक सुझाव है, आदरणीय,

अभी यह मंच ऐसे सदस्यो की सक्रियता से प्राणवान है जिनकी शास्त्रीय छन्दों पर बहुत अच्छी पकड़ नहीं है. बेहतर होगा आप प्रयुक्त छन्दों के मात्रिक या वर्णिक सूत्र दे दिया करें. इससे पाठकों को समझने सहजता होगी.

जैसे त्रिभंगी छन्द का मात्रिक सूत्र है - १०, ८, ८, ६

 

Comment by Samar kabeer on September 15, 2016 at 3:58pm
जनाब रमेश कुमार चौहान साहिब आदाब,आपकी छन्द रचना अच्छी हुई,बधाई स्वीकार करें इस प्रस्तुति पर ।
Comment by Aditya Kumar on September 15, 2016 at 12:44pm

बहुत सुन्दर आदरणीय  रमेश कुमार चौहान जी

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