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//माँ भारती पुकारे// (सार छंद)

जागो जागो वीर सपूतो. माँ भारती पुकारे ।
आतंकी बनकर बैरी फिर. छुपछुप है ललकारे ।।
उठो जवानो जाकर देखो. छुपे शत्रु पहचानो ।
मिले जहाँ पर कायर पापी. बैरी अपना मानो ।।
काट काट मस्तक बैरी के. हवन कुण्ड पर डालो।
जयहिन्द मंत्र उद्घोष करो. जीवन यश तुम पा लो ।।
जिनके मन राष्ट्र प्रेम ना हो. बैरी दल के साथी ।
स्वार्थी हो जो चलते रहते. जैसे पागल हाधी ।।
छद्म धर्म जो पाले बैठे . जन्नत के ले चाहत ।
धरती को जो दोजक करते. उनके बनो महावत ।।
बैरी के तुम छाती फाड़ों. वीर सिंह के लालों ।
रक्तबीज के ये वंशज हैं. इन्हें अग्नि पर डालो ।।
------
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 27, 2016 at 11:15pm

आदरणीय  रमेश कुमार चौहान जी, इस प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें |

Comment by pratibha pande on January 26, 2016 at 12:43pm

गणतंत्र के अवसर पर इस जोश से भरी हुई रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय  रमेश कुमार चौहान जी 

Comment by रमेश कुमार चौहान on January 24, 2016 at 6:00pm

सादर अभिनंदन कबीरजी

Comment by Samar kabeer on January 24, 2016 at 2:27pm
जनाब रमेश कुमार चौहान साहिब आदाब,इस प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें |

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