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प्रश्न लियें हैं एक (दोहा-गीत)

मातृभूमि के पूत सब, प्रश्न लियें हैं एक ।
देश प्रेम क्यों क्षीण है, बात नही यह नेक ।।

नंगा दंगा क्यों करे, किसका इसमें हाथ ।
किसको क्या है फायदा, जो देतें हैं साथ ।।
किसे मनाने लोग ये, किये रक्त अभिषेक । मातृभूमि के पूत सब

आतंकी करतूत को, मिलते ना क्यों दण्ड ।
नेता नेता ही यहां, बटे हुये क्यों खण्ड़ ।।
न्याय न्याय ना लगे, बात रहे सब सेक । मातृभूमि के पूत सब

गाली देना देश को, नही राज अपराध ।
कैसे कोई कह गया, लेकर मन की साध ।।
आजादी का अर्थ यह, हुये क्यों न अतिरेक । मातृभूमि के पूत सब

मतदाता क्या भेड़ है, नेता लेते हाॅंक ।
वोट बैंक के नाम पर, छान रहें हैं खाॅंक ।
टेर टेर क्यो बोलते, हो बरसाती भेक । मातृभूमि के पूत सब

खण्ड़ हुये बहुसंख्य के, अल्प नही अब अल्प ।
भेद भाव को छोड़ कर, किये न काया कल्प।।
हीन एक को क्यों किये, दूजे रखे बिसेक । मातृभूमि के पूत सब

हिन्दू मुस्लिम हिन्द के, भारत मां के लाल ।
राजनीति के फेर में, होते क्यों बेहाल ।
राज धर्म के काज को, करते क्यो न स्व-विवेक। मातृभूमि के पूत सब

सीमा पर सैनिक डटे, संगीन लिये हाथ ।
शीश कफन वह बांध कर, लड़े शत्रु के साथ ।
घर में बैरी देख कर, क्लेष हुये उत्सेक । मातृभूमि के पूत सब

(उत्सेक -वृद्वि या ज्यादा)

जागो जागो लोग अब, राग-द्वेष को छोड़ ।
प्रेम देश से तुम करो, साॅठ-गाॅंठ सब तोड़ ।।
आप देश से आप हो, देश आप से हेक । मातृभूमि के पूत सब
(हेक-एक)
....................
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by pratibha pande on March 3, 2016 at 8:15pm

बहुत सुन्दर दोहा गीत रचा है आज  की परिस्थिति पर सटीक उद्गारों के साथ  हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस रचना पर आदरणीय रमेश जी  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 3, 2016 at 7:18pm

आ० रमेश जी,बहुत  बढ़िया  दोहा गीत लिखा है दिल से बधाई लीजिये ,,,हाँ कुछ शब्दों पर मैं भी अटकी हूँ | 

Comment by Ravi Shukla on March 2, 2016 at 6:13pm

आदरणीय रमेश जी सुन्‍दर दोहा गीत के लिये आपको बहुत बधाई

राज धर्म के काज को, करते क्यो ना स्व-विवेक। इस पंक्ति की मात्रा फिर से देख लें  हेक और बिसेक शब्‍द का अर्थ हम नहीं समझ सके शायद नये है हमारे लिये

Comment by Ravi Shukla on March 2, 2016 at 6:13pm

आदरणीय रमेश जी सुन्‍दर दोहा गीत के लिये आपको बहुत बधाई

राज धर्म के काज को, करते क्यो ना स्व-विवेक। इस पंक्ति की मात्रा फिर से देख लें  हेक और बिसेक शब्‍द का अर्थ हम नहीं समझ सके शायद नये है हमारे लिये

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