कैसे हम आजाद हैं, है विचार परतंत्र ।
अपने पन की भावना, दिखती नहीं स्वतंत्र ।।
भारतीयता कैद में, होकर भी आजाद ।
अपनों को हम भूल कर, करते उनको याद ।
छुटे नही हैं छूटते, उनके सारेे मंत्र । कैसे हम आजाद हैं....
मुगल आक्रांत को सहे, सहे आंग्ल उपहास ।
भूले निज पहचान हम, पढ़ इनके इतिहास ।।
चाटुकार इनके हुये, रचे हुये हैं तंत्र । कैसे हम आजाद हैं...
निज संस्कृति संस्कार को, कहते जो बेकार ।
बने हुये हैं दास वो, निज आजादी हार ।।
जाने कैसे लोग वो, कहते किसे सुतंत्र । कैसे हम आजाद हैं...
आजादी के नाम पर, जो जन हुये कुर्बान ।
उनसे पूछे कौन अब, उनके ओ अरमान ।।
लड़े लड़ाई क्यों भला, ले आजादी मंत्र । कैसे हम आजाद हैं.....
वीर सपूतों से कहे,शहीद वीर सपूत ।
दे दो सुराज तुम हमें, अपनेपन अभिभूत ।।
देश धर्म पर नाज हो, गढ़ दो ऐसे तंत्र । कैसे हम आजाद हैं.....
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मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय रमेश भाई , राष्ट्र प्रेम से ओत प्रोत आपके दोहा गीत के लिये बधाइयाँ । मात्रा कहीं कहीं कम जियादा लगी देखियेगा एक बार ।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर, लडीवालाजी,कबीरजी एवं आदरणीया पाण्डेजी, आप सभी का हार्दिक अभिनंदन, आदरणीय लडीवालाजी आपके सुझाव का स्वागत है । आप सभी के स्नेह के लिये आभार
सुंदर गीत रचना हुई है श्री रमेश कुमार चौहान जी | कही कही लय भंग है, जैसे -
आजादी के नाम पर, जो जन हुये कुर्बान । - आजादी के नाम पर, हुए बहुत कुर्बान |
उनसे पूछे कौन अब, उनके ओ अरमान ।। - उनसे पूछे कौन अब, उनके क्या अरमान ||
भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीय रमेश कुमार चौहान जी बहुत सुन्दर दोहा गीत हुआ है. हार्दिक बधाई
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