देख तमाशा
नेता मांगते भीख
लोकतंत्र है ।
जांच परख
आंखो देखी गवाह
जज हो आज ।
खोलता वह
आश्वासनों का बाक्स
सम्हलो जरा
कागजी फूल
चढ़ावा लाया वह
हे जन देव
मदिरा स्नान
गहरा षडयंत्र
बेसुध लोग
चुनोगे कैसे
लड़खड़ाते पांव
ड़ोलते हाथ
होश में ज्ञानी
घर बैठे अज्ञानी
निर्लिप्त भाव
जड़ भरत
देश के बुद्धिजीवी
करे संताप
....................................
मौलिक अप्रकाशित
Comment
क्या ही सुंदर हाइकु !! बहुत बधाई आपको ।
सुन्दर और सामयि हाइकु | बधाई श्री रमेश चौहान जी
बहुत ही सुंदर एवं पूर्णत: सार्थक हाइकू हैं आ0 रमेश भाई जी..... बहुत बहुत बधाई....
आदरणीय विशाल जी, जितेन्द्रजी, राम शिरोमणीजी आप विद्वतजनों की समहमती से रचनाकर्म सार्थक हुआ । आप सभी का हार्दिक आभार
आदरणीय रमेश भाई ,बहुत ही मारक हाइकू हुए है // बहुत बहुत बधाई///सादर
एक से बढ़कर एक, सार्थक रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय रमेश जी
सभी हायकू अपने शीर्षक को पूर्णतया सार्थक करते हुए........ हार्दिक बधाई स्वीकारें भाई !!!!
जय हो आदरणीय, आपके हाईकु की छटा देखते ही बनती है, सादर
आदरणीय रमेश भाई , बहुत सुन्दर सामयिक चुनावी हाईकू रचे आपने !!!! आपको दिली बधाई !!!!
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