दोहा
बज रही बड़ी जोर की, चुनावी शंखनाद ।
निंद उड़े जहां उनकी , तुम दिल रख लो हाथ ।।
सोरठा
लोकतंत्र पर्व एक, उत्सव मनाओं सब मिल ।
बढ़े देश का मान, कुछ ऐसा करें हम मिल ।।
ललित
वोट का चोट करें गंभीर, अपनी शक्ति दिखाओं ।
जो करता हो देश हित काज, उनको तुम जीताओं ।।
गीतिका
देश के मतदाता सुनो, आ रहा चुनाव अभी ।
तुम करना जरूर मतदान, लोकतंत्र बचे तभी ।।
राजनेता भ्रश्ट हों जो, मुॅह बंद उनका करें ।
लालच चाहे जितना दें, लोभ में न कभी पड़े ।।
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मौलिक अप्रकाशित
Comment
इस चुनावी परिपेक्ष्य में नए छंदों पर इस विषय का प्रयोग सुखकारी है.... बाकी विद्वजनों ने टिप्पणी में जो कहा है उसमें मेरी भी सहमति है.... आप प्रयासरत रहें......यह निश्चित रूप से आपकी लेखनी को संबल देगा...... लेकिन जल्दबाज़ी से बचें...... कृपया पोस्ट करने से पहले रचना को एक पाठक की दृष्टि से जाँच लें तो शायद त्रुटियों को सुधारा जा सकता है..... बधाई इस अनुपम प्रयास हेतु...
आदरणीय रमेश भाई जी नित नए छंद पर आपको प्रयास करते देख प्रसन्नता होती है यह प्रयास भी बहुत अच्छा है कंटक त्रुटियों पर ध्यान दें . प्रयास हेतु बहुत बहुत बधाई स्वीकारें
आदरणीय रमेश भाई , चुनावी छंद के गम्भीर प्रयास के लिये आपको बधाई !!!!
आपकी कोशिशों के लिए धन्यवाद, आदरणीय रमेशजी.
आप छंदों पर हाथ आजमाते हैं यह सुखकारी है. किन्तु, उससे पहले आप आधारभूत तैयारियाँ तो कर लें. प्रस्तुतियों में अक्षरी दोष व्याकरण दोष आदि का होना कई सुधीजनों को पढ़ने से उचटा देगा.
छंदों का वैधानिक मूल जानना उसके बाद की बातें होती हैं, जिनपर आगे बातें होंगीं.
शुभेच्छाएँ.
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