1.
पावन पवित्र प्रेम को, करते क्यों बदनाम ।
स्वार्थ मोह में क्यों भला, देकर प्रेमी जान ।।
2.
एक प्रश्न मैं पूछती, देना मुझे जवाब ।
छोरा छोरी क्यो भला, करते प्रेम जनाब ।।
3.
तेरा सच्चा प्यार है, मेरा है बेकार ।
माॅ की ममता क्यों भला, होती है लाचार ।।
4.
सोलह हजार आठ में, मिले न राधा नाम ।
सारा जग फिर क्यो भला, जपते राधे श्याम ।।
5.
मातु पिता के बात पर, जिसने किया विवाह ।
होते उनके भी प्रबल, इक दूजे पर चाह ।।
................................
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय त्रिपाढीजी, वामनकरजी, एवं दुबेजी आप सभी ने रचना के भाव को दिया, आप सभी का हार्दिक आभार
आदरणीय श्रीवास्तवजी एवं लड़ीवालाजी आपके मार्गदर्शन स्वीकारर्य सादर धन्यवाद
आदरणीय रमेश जी इस सुन्दर रचना पर बधाई आपको !
मातु पिता के बात पर, जिसने किया विवाह ।
होते उनके भी प्रबल, इक दूजे पर चाह ।।
................................असल प्रेम के गुर बताती सुन्दर रचना ,,बधाई स्वीकारें आ.रमेश जी |
प्रेम विवाह पर लाजवाब दोहे रचे है,हार्दिक बधाई | प्रथम दोहे के इस प्रकार लिखा जान उचित लगता है, देखे -
पावन पवित्र प्रेम को, करते क्यों बदनाम । --- स्वार्थ मोह में क्यों भला, देकर प्रेम जान,
स्वार्थ मोह में क्यों भला, देकर प्रेमी जान ।। पावन पवित्र प्रेम को, करते क्यों बदनाम ?
आ० रमेश जी
आपके प्रश्न बड़े मजेदार है i भाव रचना सुघर है i शिल्प की कुछ बात करता हूँ -
सोलह हजार और आठ में प्रवाह बाधित प्रतीत होता है i
मातु-पिता के बात पर ---------यहाँ के की जगह की होना चाहिए
होते उनके भी प्रबल, इक दूजे पर चाह ।।-----------होती उनमे भी प्रबल इक दूजे की चाह i ------ सादर i
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