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जनता जर्नादन भी सुन लो (आल्हा)

नेताजी की महिमा गाथा, लोग भजन जैसे हैं गाय ।
लोकतंत्र के नायक वह तो, भाव रंग रंग के दिखाय ।।
नटनागर के माया जैसे, इनके माया समझ न आय ।
पल में तोला पल में मासा, कैसे कैसे रूप बनाय ।।
कभी कभी जनता संग खड़े, जन जन के मसीहा कहाय ।
मुफ्त बांटते राशन पानी, लेपटाप बिजली भरमाय ।
कभी मंहगाई पैदा कर, दीन दुखीयों को तड़पाय ।।
बांट बेरोजगारी भत्ता, युवा शक्ति को ही भटकाय ।।
भस्मासुर बन करे तपस्या, जनता पर निज ध्यान लगाय ।
भांति भांति से करते पूजा, वह जनता को देव बनाय ।।
जनता जर्नादन बन भोले, उनको शासन डोर थमाय ।
सत्ता बल पाकर हाथों में, भोले जन को ही दौड़ाय ।
मंहगाई भ्रष्टाचार सा, कैसे घातक अस्त्र बनाय ।
गली गली भाग रही जनता, अपने तो निज प्राण बचाय ।
भाग्य विधाता जनता जिनके, वह नेता अब भाग्य बनाय ।

काम चाहिये हर हाथों में, अपनी एक नई पहचान ।
हाथ कटोरा देते क्यों हो, हमें चाहिये निज सम्मान ।।
जात पात में बाट बाट कर, खेलो मत शकुनी का खेल ।
हम सब पहले भारत वंशी, हर मजहब में रखते मेल ।।
छद्म संप्रदायवाद बुनकर, रचे महाभारत क्यों और ।
जग उपदेशक भारत अपना, कृष्ण बुद्ध गांधी का ठौर ।।
जनता जर्नादन भी सुन लो, सभी दोष नेता का नाय ।
हृदय हाथ रखकर सोचो तुम, नेता तुम को क्यो भरमाय ।।
जमीर खो गया कहां जग में, लोभ स्वार्थ का लेप लगाय ।
फोकट में पाने को कैसे, नेता के चम्मच बन आय ।।
......................................................
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 5, 2014 at 4:16pm

अच्छा प्रयास है i  बधाई i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 5, 2014 at 11:55am

आ. रमेश भाई ,बहुत सुन्दर  आल्हा छ्न्द की रचना की है  , दिली बधाई स्वीकार करें ।

Comment by रमेश कुमार चौहान on November 4, 2014 at 8:25pm

आदरणीय सोमेशजी, खुर्शिदजी, लड़ीवालाजी आपलोगों ने रचना को समय दिया, सराहा, रचनाकर्म सार्थक हुआ आप सभी का हार्दिक आभार

Comment by रमेश कुमार चौहान on November 4, 2014 at 8:22pm

परम आदरणीय योगराजजी, आदरणीया राजेशदी आप द्वयके मार्गदर्शन से  मेरे रचनाओं निश्चित रूप से सुधार हो रहा है, आपके मार्गदर्शन और सुधार हेतु प्रेरित करता रहा है, इस पर मैं प्रयास भी करता रहा हू, पुनः प्रयास की इच्छा से आप द्वय का सादर आभार

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 4, 2014 at 12:24pm

राजनैतिक हालात का सुंदर चित्रण करती आल्हा छंद रचना के लिए बधाई श्री रमेश कुमार चौहान जी -

काम चाहिये हर हाथों में, अपनी एक नई पहचान ।
हाथ कटोरा देते क्यों हो, हमें चाहिये निज सम्मान ।।
जात पात में बाट बाट कर, खेलो मत शकुनी का खेल ।
हम सब पहले भारत वंशी, हर मजहब में रखते मेल ।---- सार्थक भाव | 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 3, 2014 at 11:37am

आल्हा के भाव बहुत सुन्दर हैं भाई रमेश चौहान जी, जिस हेतु बधाई प्रेषित है। रचना की  पहली पंक्ति देखें :
//नेताजी की महिमा गाथा, लोग भजन जैसे हैं गाय ।//      
"हैं" (बहुवचन) के साथ "गाय" (एकवचन) का उपयोग गलत हो गया है, ज़रा ध्यान दें.

Comment by khursheed khairadi on November 3, 2014 at 10:18am

काम चाहिये हर हाथों में, अपनी एक नई पहचान ।
हाथ कटोरा देते क्यों हो, हमें चाहिये निज सम्मान ।।

आदरणीय रमेश कुमार सा. अच्छे भाव ,करारा व्यंग्य है |सादर बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2014 at 9:31am
आज की राजनीति आज के हालत की पोल खोलती आल्हा छंद पर आधारित यह प्रस्तुति सराहनीय है दूसरा भाग बेहतर है पहले भाग में कहीं कहीं लय भंग महसूस हुई इसे और बेहतर कर सकते हैं |बहरहाल आपको बहुत- बहुत बधाई .
Comment by somesh kumar on November 3, 2014 at 7:41am

आज की परिस्तिथियों को सम्बोधित करते हुए,राजनीति पर यथार्थपूर्ण आल्हा ,बधाई आप को 

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