मां भारती की शान को, अस्मिता स्वाभिमान को,
अक्षुण सदा रखते, सिपाही कलम के ।
सीमा पर छाती तान, हथेली में रखे प्राण,
चैकस हो सदा डटे, प्रहरी वतन के ।
चांद पग धर कर, माॅस यान भेज कर,
जय हिन्द गान लिखे, विज्ञानी वतन के ।
खेल के मैदान पर, राष्ट्र ध्वज धर कर,
लहराये नभ पर, खिलाड़ी वतन के ।
हाथ में कुदाल लिये, श्रम-स्वेद भाल लिये,
श्रम के गीत गा रहे, श्रमिक वतन के ।
कंधो पर हल धर, मन में उमंग भर,
अन्न-धन्न पैदा करे, कृषक वतन के ।
व्यपारी बड़े काम के, निपुण साम दाम के,
उन्नत करते माथा, उद्यमी वतन के ।
खास आम लोग सब, राष्ट्र प्रेम उर धर,
नित्य-नित्य पखारते, चरण वतन के ।
फैंशन के चक्कर में, पश्चिम के टक्कर में
भूले निज संस्कारों को, हिन्द नर नारियां ।
अश्लील गीत गान को, नंगाय परिधान को
शर्म हया के देश में, मिलती क्यों तालियां ।
भाई कहके नंगों को, दादा कह लफंगो को,
रक्त जनित संबंधो को, दे रहे क्यों गालियां ।
दुआ-सलाम छोड़ के, राम से नाता तोड़ के
हाय हैलो बोल-बोल, हिलाते हथेलियां ।
हया रखे ताक पर, तंग वस्त्र धार कर,
लोकलाज कुरेदतीं, आज की लड़कियां ।
नुपूर के छन-छन, कंगना के खन-खन,
नवयुवतियों को देती, मानो कोई गालियां ।
साडि़यां शरमाती है, घाघरा घबराती है,
सामने हो जब कोई, आज की लड़कियां ।
छोड़ सखी सहेली को, नारीत्व के पहेली को
लड़को को मित्र बनाती, आज की लड़कियां ।
..................................
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय रमेश भाई
सभी घनाक्षरी बड़े ही सुंदर , भावपूर्ण हैं । तीसरे और चौथे के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें , बहुत तीखा प्रहार किया है, व्यंग्य , कटाक्ष में पूरी सच्चाई और ईमानदारी है। दोनों घनाक्षरी पोस्टर के रूप में महानगरों , बड़े शहरों के चौक चौराहे पर लगाने लायक है। इसका कुछ असर तो अवश्य होता क्योंकि संस्कार , बड़ों का लिहाज और शर्मो हया भारत में अब भी बड़ी मज़बूती से कायम है , पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित कुछ नकलची और भटके लोग इसे नष्ट नहीं कर सकते।
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