For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चार घनाक्षरी छंद (रमेश कुमार चौहान)

मां भारती की शान को, अस्मिता स्वाभिमान को,
अक्षुण सदा रखते, सिपाही कलम के ।
सीमा पर छाती तान, हथेली में रखे प्राण,
चैकस हो सदा डटे, प्रहरी वतन के ।
चांद पग धर कर, माॅस यान भेज कर,
जय हिन्द गान लिखे, विज्ञानी वतन के ।
खेल के मैदान पर, राष्ट्र ध्वज धर कर,
लहराये नभ पर, खिलाड़ी वतन के ।

हाथ में कुदाल लिये, श्रम-स्वेद भाल लिये,
श्रम के गीत गा रहे, श्रमिक वतन के ।
कंधो पर हल धर, मन में उमंग भर,
अन्न-धन्न पैदा करे, कृषक वतन के ।
व्यपारी बड़े काम के, निपुण साम दाम के,
उन्नत करते माथा, उद्यमी वतन के ।
खास आम लोग सब, राष्ट्र प्रेम उर धर,
नित्य-नित्य पखारते, चरण वतन के ।

फैंशन के चक्कर में, पश्चिम के टक्कर में
भूले निज संस्कारों को, हिन्द नर नारियां ।
अश्लील गीत गान को, नंगाय परिधान को
शर्म हया के देश में, मिलती क्यों तालियां ।
भाई कहके नंगों को, दादा कह लफंगो को,
रक्त जनित संबंधो को, दे रहे क्यों गालियां ।
दुआ-सलाम छोड़ के, राम से नाता तोड़ के
हाय हैलो बोल-बोल, हिलाते हथेलियां ।

हया रखे ताक पर, तंग वस्त्र धार कर,
लोकलाज कुरेदतीं, आज की लड़कियां ।
नुपूर के छन-छन, कंगना के खन-खन,
नवयुवतियों को देती, मानो कोई गालियां ।
साडि़यां शरमाती है, घाघरा घबराती है,
सामने हो जब कोई, आज की लड़कियां ।
छोड़ सखी सहेली को, नारीत्व के पहेली को
लड़को को मित्र बनाती, आज की लड़कियां ।
..................................
मौलिक अप्रकाशित

Views: 474

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on October 8, 2014 at 11:04am
पूर्व दो चरणों में आपने देश की सुंदर प्रसस्ति कियी ती घनाक्षरी के अगले दो चरणों में आपने देश के गाल और कपाल पर कालिख पोतने वालों पर ढंग से प्रहार किया है | मनभावन रचना के लिए असीम साधुवाद रमेशजी |
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 6, 2014 at 7:15pm

आदरणीय रमेश भाई

सभी घनाक्षरी बड़े ही सुंदर , भावपूर्ण हैं । तीसरे और चौथे के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें , बहुत तीखा प्रहार  किया है, व्यंग्य , कटाक्ष में पूरी  सच्चाई और ईमानदारी है। दोनों   घनाक्षरी  पोस्टर के रूप में महानगरों , बड़े शहरों के चौक चौराहे पर लगाने लायक है। इसका कुछ असर  तो अवश्य होता क्योंकि संस्कार , बड़ों का लिहाज और शर्मो हया भारत में अब  भी बड़ी मज़बूती से कायम  है , पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित कुछ नकलची और भटके लोग इसे नष्ट नहीं कर सकते।  


कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
2 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service