काम काम दिन रात है, पैसे की दरकार ।
और और की चाह में, हुये सोच बीमार ।।
रूपया ईश्वर है नही, पर सब टेके माथ ।
जीवन समझे धन्य हम, इनको पाकर साथ ।।
मंदिर मस्जिद देव से, करते हम फरियाद ।
अल्ला मेरे जेब भर, पसरा भौतिक वाद ।।
निर्धनता अभिशाप है, निश्चित समझे आप ।
कोष बड़ा संतोष है, मत कर तू संताप ।।
धरे हाथ पर हाथ तू, सपना मत तो देख ।
करो जगत में काम तुम, मिटे हाथ की रेख ।।
बात नही यह दोहरी, है यही गूढ ज्ञान ।
धन तो इतना चाहिये, जीवन का हो मान ।।
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मौलिक अप्रकाशित
Comment
सभ महानुभावों का आभार
आदरणीय भंडारीजी एवं सौरभजी आप द्वय द्वारा इंगित दोष उचित है इसमें संशोधन का प्रयास करूंगा
आदरणीय रमेशभाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आदरणीय गिरिराजभाई ने अच्छे सुझाव दिये हैं. मैं उनके कहे से सहमत हूँ. साथ ही,
खुदा नही है रूपया, पर सब टेके माथ में रुपया को रूपया न लिखें. यानि रुपये के र में दीर्घ ऊ न लगावें.
आदरणीय रमेश भाई , सुन्दर दोहों के लिये बधाइयाँ ।
अंति दो दोहों मे कुछ कमियाँ लग रहीं है --
धरे हाथ पर हाथ तुम, सपना मत तो देख । तुम के साथ देख ग़लत प्रयोग है , तू देख सही लगता है मुझे , सोचियेगा ।
करो जगत में काम तुम, मिटे हाथ की रेख ।।
दूसरे में - कहें इसे गुढ़ ज्ञान , सही शब्द, गूढ़ है जिसे मात्रा मिलाने के लिये गुढ़ ले लियी गया है , मेरे खयाल से जानकार इसे ग़लत कहेंगे । आप जानकारों की प्रतिक्रिया का इंतिज़ार अवश्य कर लें सुधारने के पहले ।
आदरणीय रमेश भाई इन सुन्दर दोहों के लिए हार्दिक बधाई .
बहुत ही सुंदर दोहे कहे आपने आदरणीय रमेश जी, आपको बहुत-२ बधाई
सुन्दर प्रयास हुआ है आदरणीय भाई जी। ।सादर
बहुत उम्दा दोहे आ० रमेश जी ..बहुत बहुत बधाई
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