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“नमस्कार बाबू जी..! मुझे इस खसरे की नकल जल्द से जल्द निकलवाना है, यह रहा मेरा आवेदन”   रमेश ने सरकारी दफ्तर में फाइलों के बीच सिर दिए बाबू से कहा

“ अरे भाईसाहब..! जिसे देखो उसे जल्दी है. यहाँ इतना काम फैला पड़ा है और स्टाफ भी कम है, अपना आवेदन दे जाइए और आप १५ दिनों के बाद आइयेगा. आपको नकल मिल जायेगी. हाँ..!  अगर जरुरी काम हो ,जल्दी चाहिए तो थोड़ा सेवा-शुल्क कर दीजिये. कल ले जाना अपनी नकल” बाबू ने रमेश का आवेदन लेकर फ़ाइल कवर में रखते हुए कहा

“ अरे बाबू जी..! कैसी बातें कर रहे है आप..? यह रहा आपकी सेवा का शुल्क” रमेश ने मुस्कुराते हुए एक ५०० रु का नोट बाबूजी को देते हुए कहा

“ हाँ..! भाईसाहब, देखिये न जिन विभागों में बिलकुल काम नही है वहां भी यह सब. खैर..! यह लीजिये ‘सेना दिवस का फ्लेग’ रख लीजिये. मुझे आटे में नमक मिलाना ही अच्छा लगता है” बाबू ने रमेश से नोट लेकर, मुस्कुराते हुए ५० रु का फ्लेग देते हुए कहा

   

      जितेन्द्र ‘गीत’

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 5, 2014 at 9:52am

रिश्वत लेने के क्या क्या हथकंडे अपनाते हैं लोग हर विभाग का यही हाल है और हम लोग अपना काम निकलवाने के लिए कुछ भी कर गुजरते हैं तो अपराधी हम भी बराबर के हुए सजा दोनों के लिए है किन्तु कोई असर अभी भी दिखाई नहीं देता धंधा चल रहा है यूँ ही ,बहुत बहुत बधाई जितेन्द्र भैया |

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 5, 2014 at 12:04am
प्रिय जीतेन्द्र जी ,एक सार्थक कथा के लिए बधाई। वास्तव में पब्लिक सीट पर बैठे कर्मचारियों को कोई भी ऐसे कार्य नहीं देने ही चाहिए जहां वे प्रत्यक्ष में कुछ और परोक्ष में कुछ और कारोबार करने लगें . बेईमानी को किसी भी रंग में रंगें स्वीकृति नहीं मिलनी चाहिए, ये एक प्रकार की दीमक है .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 4, 2014 at 10:16pm

आदरणीय बागी जी,

सर्वप्रथम लघुकथा पर आपने  अपना अनमोल समय दिया , आपका ह्रदय से आभारी हूँ. लघुकथा पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया व् लघुकथा में  कमी, मैं नतमस्तक होकर स्वीकार करता हूँ. मैं पूर्ण कोशिश करूँगा रचना को कसौटी पर खरा उतारने की. अपना स्नेह व् मार्गदर्शन हमेशा बनाये रखियेगा.

सादर!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 4, 2014 at 8:48pm

किसी ने रिश्वत मांगी और किसी ने उम्मीद से ज्यादा दिया, फ्लैग सामान्यतः सरकारी कर्मचारी डोनेसन देने के लिए लेते हैं या कार्यालय में एक टारगेट जैसा फ्लैग आता है कि इतना पैसा तो जाना ही है। खैर बात लघुकथा पर, लघुकथा क्या कहना चाहती है या क्या सन्देश देना चाहती है।  क्या यह कि कोई रिश्वत माँगे तो देकर काम करवा लो, यदि ऐसा तो   ……जीतेन्द्र जी मुझे यह लघुकथा अच्छी नहीं लगी। 

सादर। 

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