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ग़ज़ल :- तन्हाई में अक्सर सोचा करते हैं

बह्र:-फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ै

तन्हाई में अक्सर सोचा करते हैं
हम को क्या करना था और क्या करते हैं

हम शाईर हैं,हम से क्या पोशीदा है
दुनिया को हर रंग में देखा करते हैं

उनसे बढ़कर झूट न कोई बोलेगा
जो भी सच कहने का दावा करते हैं

ऐसे भी नादान हैं जो घर का रोना
बाज़ारों में बैठ के रोया करते हैं

उनकी आदत है सैराब नहीं करते
क़तरा क़तरा प्यास बुझाया करते हैं

दुनिया वाले चैन से सोते हैं और हम
ज़ख़्मों की गहराई नापा करते हैं

दुनिया भर की लानत है उन लोगों पर
जो अपने ईमान का सौदा करते हैं

अपना तो ईमान यही है यार "समर"
जो भी वह करते हैं अच्छा करते हैं


"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on March 23, 2015 at 6:05pm
जनाब ई.गणेश जी "बाग़ी" साहिब,आदाब,आपकी बधाई कौन अस्वीकार कर सकता है,आपकी शिर्कत ग़ज़ल में हुई तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by Samar kabeer on March 23, 2015 at 6:01pm
मोहतरमा वन्दना जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by Samar kabeer on March 23, 2015 at 5:58pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी ,आदाब आपकी शिर्कत ग़ज़ल में हो गई मेरे लिये यही बहुत है,तहे दिल से शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on March 23, 2015 at 5:55pm
जनाब गुमनाम जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by Samar kabeer on March 23, 2015 at 5:53pm
जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,आपकी शिर्कत ग़ज़ल में हो गई लिखना सार्थक हुवा,तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by Samar kabeer on March 23, 2015 at 5:50pm
जनाब महर्षि त्रिपाठी जी,आदाब,ज़र्रा नवाज़ी के लिये तहे दिल से शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on March 23, 2015 at 5:46pm
जनाब निर्मल नदीम साहिब,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 23, 2015 at 11:37am
अच्छे अश’आर हुए हैं आ. समर जी, दाद कुबूल करें
Comment by Hari Prakash Dubey on March 23, 2015 at 12:37am

आदरणीय समर कबीर जी , इस सुन्दर ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई ! सादर 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 22, 2015 at 8:48pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय, बधाई प्रेषित है स्वीकार करना चाहेंगे.

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