For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- हमसफ़र निकलते हैं .. (बराए इस्लाह)

212-1222-212-1222

ख़्वाब मेरी आँखों से रात भर निकलते हैं
रहगुज़र नहीं आसाँ बा ख़बर निकलते हैं

बेचने ज़मीर अपना हम चले हैं गलियों में
देखो खिड़कियों से अब कितने सर निकलते हैं

नातवाँ बहादुर को दे रहा चुनौती है
चींटियों के भी अब तो बाल-ओ-पर निकलते हैं

दिल हमारा आईना आप हैं खरे पत्थर
बज़्म आपकी और हम टूट कर निकलते हैं

मैक़दे कहाँ करते, फ़र्क रिन्दो-वाइज़ का
जो भी पीते हैं मदिरा झूम कर निकलते हैं

बिन किसी विभीषण के ढहती है कहाँ लंका
साज़िशों में कुछ अपने मोतबर निकलते हैं

आख़िरत में क्या होगा हम अभी से क्यूँ सोचें
सोच कर यही घर से हमसफ़र निकलते हैं

ये ग़ज़ल मुरस्सा हो चाहता था मैं लेकिन
जल्दबाज़ी में मुझसे कब गुहर निकलते हैं

-----------------------------------------
मौलिक व अप्रकाशित © दिनेश कुमार
-----------------------------------------

Views: 781

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by दिनेश कुमार on March 24, 2015 at 10:49pm
आदरणीय समर कबीर सर जी, बहुत बहुत आभारी हूँ, आप ने पुनः मेरा मार्गदर्शन किया। ज़ह्न के बारे में भी आप ठीक कहते हैं। हिन्दी भाषाी होने की वजह से उर्दू के शब्दों में मुझसे काफी गलती होती हैं। पुनः आभार सर।
मतला काफी सोचने के बाद भी नहीं बदल पाया हूँ अभी, जैसे ही कुछ सूझता है, सभी गलतियां ठीक करूँगा। सादर
Comment by Samar kabeer on March 24, 2015 at 10:40pm
जनाब दिनेश कुमार जी,आदाब,मैंने पहले भी अर्ज़ किया था कि "सक्ता" बह्र में आने वाली रुकावट को कहते हैं,बह्र में एक रुक्न कम हो या बढ़ जाए,दोनों ही सूरतों में "सक्ता" कहा जाएगा,आपके मिसरे में "अशआर" का "र" बढ़ रहा है,एक बात और आपने "ज़ह्न" को ज़ेहन लिखा है यह सही नहीं हैं कृपा करके दुरुस्त फ़रमा लें |
Comment by दिनेश कुमार on March 24, 2015 at 6:15pm
आदरणीय समर कबीर सर जी, आप ने हौसला बढ़ाने वाली बात कही है। बहुत बहुत आभारी हूँ।
सक्ता के बारे में आप ने ही बताया था कि रुक्न की कमी। सर जी, थोड़ा explain कर देंगे तो समझ आ जाएगा। क्यों कि मुझे तो एक मात्रा ज़्यादा लगी जैसा कि भाई मिथिलेश जी और भाई शिज्जू जी ने बताया है। सर जी
Comment by Samar kabeer on March 24, 2015 at 5:55pm
जनाब दिनेश कुमार जी,आदाब,बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद क़ुबूल फ़रमाऐं,मतले के ऊला मिसरे में सक्ता महसूस हो रहा है,कृपया ध्यानपूर्वक देख लें |
Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 24, 2015 at 2:33pm

आदरणीय दिनेश जी ..इस सुंदर ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई ..लेकिन 

ज़ेहन से       मेरे अश'आ    र रात भर    २१२  कैसे हुआ   निकलते हैं

 
रहगुज़र नहीं आसाँ बा ख़बर निकलते हैं

बेचने ज़मीर अपना हम चले हैं गलियों में
देखो खिड़कियों से अब कितने सर निकलते ..इन पंक्तियों में बह के हिसाब से मैं दुबिधा में हूँ ..

सिर्फ अपनी जानकारी के लिए जानना चाहता हूँ  अन्यथा न लीगियेगा ...सादर 

Comment by दिनेश कुमार on March 24, 2015 at 3:07am
बहुत शुक्रिया आदरणीय MUKESH SRIVASTAVA जी। सराहना के लिए हार्दिक आभार।
Comment by दिनेश कुमार on March 24, 2015 at 3:05am
सराहना के लिए बहुत शुक्रिया मोहतरमा Nidhi Agrawal साहिबा।
Comment by दिनेश कुमार on March 24, 2015 at 3:03am
सराहना के लिए हार्दिक आभार भाई हरिप्रकाश दूबे जी।
Comment by दिनेश कुमार on March 24, 2015 at 3:00am
आदरणीय भाई शिज्जू जी और भाई मिथिलेश जी, मैं आप दोनों का बहुत बहुत बहुत आभारी हूँ, आज आप ने मेरी एक बहुत बड़ी गलत धारणा को दूर किया। मेरे जैसे जो सिर्फ mobile internet पर अलग अलग blogs और sites को पढ़ कर ही थोड़ा बहुत कोशिश करना सीखें हैं, ऐसे बहुत सी गलत धारणाएं मन में पाले हुए हो सकते हैं। पुनः आभार के साथ एक request भी है कि आप भविष्य में भी मेरी हल्की से हल्की चूक भी मुझे बेझिझक बताते रहेंगे।
इस ग़ज़ल को edit करने की कोशिश करता हूँ। हार्दिक धन्यवाद, एक बार फिर।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 23, 2015 at 11:40pm

ज़ेहन से मेरे अश'आर रात भर निकलते हैं
रहगुज़र नहीं आसाँ बा ख़बर निकलते हैं बहुत खूब!

बेचने ज़मीर अपना हम चले हैं गलियों में
देखो खिड़कियों से अब कितने सर निकलते हैं वाह वाह!

सुन्दर गजल पर ढेरों बधाईयां आ० दिनेश सर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

दोहा सप्तक. . . . . नजरनजरें मंडी हो गईं, नजर बनी बाजार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार…See More
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उम्र  का खेल । स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।…See More
Saturday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम - सर सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार…"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपकी लघुकविता का मामला समझ में नहीं आ रहा. आपकी पिछ्ली रचना पर भी मैंने…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service