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जिन्दगी के गीत गाता आदमी रो जायेगा
जिस घड़ी पत्थर का ये दिल मोम सा हो जायेगा
भूख से बेहाल बच्चा जो न सोया अब तलक
माँ अगर लोरी सुना दे भूखा ही सो जायेगा
आज तक मंदिर न जाकर कर दिया जो पाप है
माँ की सेवा से मिला आशीष वो धो जायेगा
मुतमइन था देख कर मैले में इंसानों की भीड़
तब न सोचा था,यहाँ बच्चा मेरा खो जाएगा
मानती जिस को थी दुनिया इक मसीहा आज तक
बीज नफरत के नहीं सोचा था यूं बो जायेगा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ० आशुतोष सर जी,सुन्दर गजल पर हार्दिक बधाई!
आदरणीय डॉ आशुतोष जी ग़ज़ल पर आपका प्रयास सराहनीय है बधाई स्वीकार करें । ग़ज़ल को थोड़ा समय दिया करें तो और भी ज़्यादा निखार आ जायेगा
आदरणीय आशुतोष भाई , अच्छी गज़ल हुई है , बधाई आपको ! आ. समर भाई की सलाह उचित है , खयाल कीजियेगा ॥
आदरणीय डॉ विजय सर ..आप सबकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रियाओं से ही नया लिखने का हौसला मिलता है सादर
आदरणीय बागी जी ..रचना पर आपके मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद . आपके प्रतिक्रिया पर चिंतन किया तो लगा या तो मैं अपनी सोच को सही ढंग से रख नहीं सका ..या फिर मेरी सोच ही गलत थी ..मैं इस पर ज्यादा सोच नहीं पा रहा हूँ ..आपके मार्गदर्शन से मैं शायद सही दिशा में सोच पाऊँ ..सादर
अ० आशुतोष जी
आपकी अच्छी गजलें पढ़ी हैं पर इसमें आपने समय कम दिया है . सादर .
आदरणीय मिथिलेश जी ..आपके मशविरे पर अमल अवश्य करूंगा ..रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल बधाई सादर
आदरणीय श्याम नारायण जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर
आदरणीय समर कबीर जी ..रचना पर प्रोत्साहन के लिए तहे दिल धन्यवाद ..आपके मशविरे पर मैं अवश्य ध्यान दूंगा ..मेरा आशय सिर्फ इतना था की आजकल जिस तरह से मासूम बच्चे अपहृत हो रहे हैं वो भी उस समाज में जो सभ्य होने का दावा करता है हम इस सफ़ेद पोशो पर भरोसा कर लेते हैं और धोखा खा जाते हैं , इंसान से लगते शैतानो हम पहचान नहीं पा रहे हैं ,,मेरा ऐसा सोचना था जो शायद सही नहीं है ..आप इस पर मुझे कोई मशविरा देंगे तो मुझे बेहद खुशी होगी / सादर
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