For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जाम छूते मेरे हंगामा क्यूँ

२१२२  १२१२   २२

हुस्न वाले सलाम करते हैं 

क़त्ल यूं ही तमाम करते हैं 

वो मसीहा चमन को लूट कहे 

काम ये लोग आम करते हैं 

आग दिल में लगाते गुल दिन में 

रात तन्हाई नाम करते हैं 

काम मेरा हुनर जो कर न सका 

मैकदे के ये जाम करते हैं 

जाम छूते मेरे हंगामा क्यूँ 

शेख तो  सुब्हो-शाम करते हैं 

कैसे रिश्तों में वो तपिश मिलती 

रिश्ते जब तय पयाम करते हैं 

उनको बुलबुल तभी ये भाती है 

जब ये उसको गुलाम करते हैं 

दिल में खंजर छुपा के बैठे पर 

मिलते ही राम राम करते हैं 

सोना चढ़ कर के सर पे बोल रहा 

काम ये उसके दाम करते हैं 

हिन्दू मुस्लिम के बीच खाई को 

गहरा पंडित इमाम करते हैं

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 748

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 29, 2015 at 7:47pm

आ० आपकी व्याख्या से अर्थ स्पष्ट हुआ!पर ''वो मसीहा'' से बात स्पष्ट नही हो रही ''खुद को मसीहा कहने वाले'' ऐसा कुछ भाव रहता तो ज्यादा स्पष्ट होता!सादर!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 29, 2015 at 5:23pm

प्रिय कृष्णा जी . मसीहा शब्द मैंने इस लिए लिया था क्योंकि तमाम धर्म गुरु जो जमाने के लिए मसीहा बने हुए हैं उन्होंने जो कृत्य किये हैं उनसे कितने ही लोगों के खुशी में दिन गुजारते परिवार मानसिक अवसाद की स्थिति में आ गए ..मैंने ये सोच कर लिखा था ..आपके बिचार के अनुरूप चिंतन करके उचित संसोधन करने का प्रयास करूंगा ..सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 29, 2015 at 5:16pm

आदरणीय समर कबीरजी ..रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया और मार्गदर्शन के लिए हृदय से आभारी हूँ ..आपके मशविरा बिलकुल सही है मैं उचित संसोधन करने का प्रयास करूंगा सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 29, 2015 at 5:15pm

प्रिय कृष्णा जी ..आपके इन स्नेहिल उत्साहवर्धक शब्दों के लिए दिल से धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 29, 2015 at 5:14pm

आदरणीय नूर जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद सादर 

Comment by Samar kabeer on May 29, 2015 at 12:06am
जनाब डॉ आशुतोष मिश्रा जी,आदाब,बहुत अच्छी और ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

"जाम छूते मेरे हंगामा क्यूँ"

इस मिसरे में आपने "हंगामा" शब्द को लिखा तो "हंगामा" है लेकिन इसे "हगामा" के वज़्न पर बांधा है जिसकी वजह से लय बाधित हो रही है ,देख लीजियेगा ।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 28, 2015 at 10:05pm

वाह! वाह! आ० आशुतोष सर! सुन्दर गजल हुयी है हार्दिक बधाई!

मुझे 'मसीहा' शब्द का चयन तनिक जम नही रहा! निवेदन है कृपया देख लीजिये!

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 28, 2015 at 9:38pm

वाह आ. आशुतोष जी .... बहुत अच्छे ..बधाई 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 28, 2015 at 9:34pm

आ0 आशुतोष भाई जी,  // दिल में खंजर छुपा के बैठे पर, मिलते ही राम राम करते हैं //.........सुंदर गज़ल के लिये दाद कुबूल करें. सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service