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हम भी दबंग हैं, दमदार किसम के

221 122 221 122

एक नए किस्म की- नए प्रयोग वाली ग़ज़ल
=======================================
मुस्कान दिखा के, बे-हाल बना के।
होंठों की लकीरों, का जाल बिछा के।।

यूँ आँख मिला के, जो तीर चलाया।
आया हूँ मैं जाना, दरख्वास्त लिखा के।।

जाओ न ज़रा तुम, जाओगे कहाँ अब।
दीवाने दरोगा, की नींद उड़ा के।।

संगीन दफ़ा है, चालान करेंगे।
करना है हवाले, तुमको वफ़ा के।।

तुम्हें प्रेम पाश में, गिरफ्तार करेंगे।
हम भी दबंग हैं, दमदार जहाँ के।।

मुजरिम हो मगर तुम, कुछ और तरह के।
अरदास करेंगे,हम दिल में बसा के।।

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 23, 2015 at 10:54pm
बहुत बहुत आभार समर कबीर सर।
अभी सीख रहा हूँ ग़ज़ल /कहना
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 23, 2015 at 10:53pm
बहुत बहुत आभार समर कबीर सर।
अभी सीख रहा हूँ ग़ज़ल /कहना
Comment by Samar kabeer on August 23, 2015 at 10:47pm
जनाब पंकज कुमार मिश्रा जी,आदाब,अच्छा प्रयोग किया है भाई आपने ।

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