For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अतुकांत कविता : प्रतिनिधि (गणेश जी बागी)

मैं सड़क हूँ
मुझे तैयार किया गया है
रोड रोलरों से कुचल कर.


मुझे रोज रौंदते हैं 
लाखों वाहन
अक्सर....
विरोध प्रदर्शन का दंश
झेलती हूँ
अपने कलेजे पर
होता रहता हैं
पुतला दहन भी
मेरे ही सीने पर
विपरीत परिस्थितियों में
मैं ही बन जाती हूँ
आश्रय स्थल
कई कई बार तो
प्राकृतिक बुलावे का निपटान भी
हो जाता है
मेरी ही गोद में


फिर भी.....

मैं सहिष्णु हूँ
या
असहिष्णु !
यह तय करते हैं
कथित बुद्धिजीवी.


मैं सड़क हूँ
एक सच्ची प्रतिनधि
इस देश की.

(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट =>लघुकथा : शातिर

Views: 1382

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on December 1, 2015 at 10:48am
वाह ! बखूबी निर्वाह हुआ है सच्चे प्रतिनिधित्व का आपकी इस अनुपम रचना में आदरणीय गणेश जी बागी जी , बधाई स्वीकार करें ।
Comment by प्रदीप नील वसिष्ठ on December 1, 2015 at 9:36am

क्षमा करें बागी जी , मैंने आपके उत्साहवर्धन के लिए नहीं लिखा।
मैंने वही कहा जो आपकी रचना पढ़ कर मेरे मुंह से निकला। आप में व्यंग्य-प्रतिभा है।
बस इतना जरूर याद रखिएगा कि अब आपकी जिम्मेवारी बहुत बढ़ गई , कमज़ोर रचना न आने पाए
इति शुभम्


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 1, 2015 at 9:25am

आदरणीय प्रदीप नील जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया पाकर हृदय प्रफुलित है. आपका आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 1, 2015 at 9:24am

आदरणीय श्याम बिहारी जी, सराहना हेतु आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 1, 2015 at 9:23am

आदरणीय समर साहब, आपकी प्रतिक्रिया अवश्य ही मेरे आत्मबल में वृद्धि करेगी, बहुत बहुत आभार.

Comment by प्रदीप नील वसिष्ठ on November 30, 2015 at 9:18pm

बहुत खूब बागी जी।  प्रतीक समझने वाले समझ ही जाएंगे।  आपकी व्यंग्य-प्रतिभा को नमन 

Comment by Shyam Narain Verma on November 30, 2015 at 4:18pm
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई सादर
Comment by Samar kabeer on November 30, 2015 at 2:30pm
जनाब इ.गणेश जी 'बाग़ी' जी आदाब,आपकी कविता पसंद आई, बहुत अच्छा विषय चुना है आपने और उसको निभाया भी ख़ूब है,ढेरों दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 29, 2015 at 7:35pm

उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय तेज वीर सिंह जी.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 29, 2015 at 7:34pm

उत्साहवर्धन और आशीर्वाद हेतु हृदय से आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . निर्वाण

दोहा दशम्. . . . निर्वाणकौन निभाता है भला, जीवन भर का साथ ।अन्तिम घट पर छूटता, हर अपने का हाथ ।।तन…See More
28 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service