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प्रतिशोध - ( लघुकथा ) –

प्रतिशोध -  ( लघुकथा  ) –

 "प्रधान जी, यह क्या देख रहा हूं!आज तो आप पंडित होकर भी ,अपने जानी दुश्मन,  हरिज़न विधायक गंगा राम  के बेटे को शराब और क़बाब की दावत  दे रहे थे और बराबर में साथ बैठा कर तीन पत्ती भी खिला रहे थे"!

"बाबूलाल, यह राजनीति है,तुम्हारी समझ में नहीं आयेगी"!

"कोई काम करवाना है क्या विधायक जी से"!

"मैं उस कुत्ते  की शक्ल भी देखना पसंद नहीं करता, उसकी वज़ह से तो मेरी विधायकी की सीट छिन गयी"!

"तो फ़िर इस दावत का क्या राज़ है"!

"इस राज़ को अपने तक ही रखो तो बता सकता हूं"!

"कैसी बात कर रहे हो प्रधान जी,आपको मुझ पर भरोसा नहीं,मैं तो आपका खास आदमी हूं"!

"तो सुन,किसी से दुश्मनी निकालनी हो तो उसकी औलाद को शराबी ,क़बाबी और ज़ुआरी बना दो"!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on January 19, 2016 at 9:17pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी!आपका आदाब भी क़ुबूल और आपकी बधाई भी क़ुबूल!शुक्रिया ज़नाब!

Comment by Samar kabeer on January 19, 2016 at 9:12pm
जनाब तेजवीर जी आदाब,शानदार प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें |
Comment by TEJ VEER SINGH on January 19, 2016 at 12:44pm

हार्दिक आभार अदरणीय शेख उस्मानी जी!

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 19, 2016 at 10:42am
औलाद बिगाड़ने या बहू-बेटी की आबरू लूटने के ये नुस्ख़े ऐसे लोगों की फितरत ही बन गई है। भड़ास निकालने की तुच्छ मानसिकता को परिभाषित करती बढ़िया प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय तेज वीर सिंह जी।

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