विद्या दान – ( लघुकथा ) –
सारे शहर में इश्तिहार लगे थे कि शास्त्रीय संगीत की प्रख्यात गायिका पदमश्री सुमित्रा देवी गंधर्व की सोलह वर्षीय सुपुत्री एवम शिष्या संगीतिका गंधर्व के जीवन का प्रथम गायकी कार्य क्रम शाम को सात बजे टैगोर भवन में होगा!
इस क्षेत्र के जाने माने एवम मशहूर लोग स्तब्ध थे क्योंकि सुमित्रा देवी ने संगीत के प्रति अपनी अटूट आस्था के चलते शपथ ली थी कि ना तो वह कभी विवाह करेंगी और ना कभी किसी को शिष्य बनायेंगी!
नियत समय पर कार्य क्रम शुरु हुआ!सर्व प्रथम सुमित्रा देवी ने मंच से संबोधित किया,"सभी के मन में इस बच्ची को लेकर कुछ प्रश्न उठ रहे होंगे!पहले आप उसकी कला का आनंद लीजिये और उसकी प्रतिभा का मूल्यांकन कीजिये!तत्पश्चात मैं आपसे उसका परिचय कराऊंगी “!
संगीतिका गंधर्व की स्वर साधना पर श्रोता मंत्र मुग्ध थे!इतनी सुरीली और त्रुटि रहित गायकी प्रथम प्रयास में कभी भी नहीं देखी गयी!प्रांगण तालियों की गडगडाहट से देर तक गूंजता रहा!जाने माने संगीतज्ञ चकित थे!
सुमित्रा देवी ने पुनः मंच को संबोधित किया,"संगीत के गुणीजनों एवम कर्णधारों से क्षमाप्रार्थी हूं क्योंकि मैंने एक नियम तोडा है!शास्त्रीय संगीत के दिग्गजों ने नियम बनाया था कि केवल ब्राह्मण युवक और युवतियों को ही इस विधा में पारंगत किया जाय !यह लडकी ब्राह्मण नहीं है!यह मेरे घर की महरी की बेटी है!पांच साल की उम्र में यह अपनी मॉ के साथ मेरे घर आती थी!मैं जब रियाज़ करती थी तो यह बडी तल्लीनता से,दो दो तीन तीन घंटे, मुझे एकाग्रता और तल्लीनता से सुनती थी! एक बार मैंने पूछा कि तुम कुछ समझी तो इसने पूरी लय ताल के साथ सब सुना दिया!मैं भाव विभोर एवम दंग हो गयी!तभी मैंने निर्णय लिया कि इसको संगीत के क्षेत्र में लाना होगा!इसलिये मैंने इसे विधिवत गोद लिया है!अब यह मेरी बेटी है, आगे निर्णय आप लोगों के हाथ में है”!
तालियों की गूंज़ और गडगडाहट से आभास हो रहा था कि निर्णय संगीतिका के पक्ष में हो चुका था !
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी!मेरी लघुकथा पर आपका उपस्थित होना ही मेरे लिये गौरव की बात है साथ ही उस पर आपकी प्रशंसात्मक टिप्पणी तो मेरे अंदर और ऊर्ज़ा का संचार करती है!पुनः आभार!
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