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गोली (लघुकथा)राहिला

उसके अब्बा को खानदान में ही बेटी ब्याहनें की जाने कैसी सनक सवार हुई,कि अपने भतीजे से शादी के फरमान की गोली मेरे सीने में दागकर, मेरी और शब्बो की मुहब्बत का जनाज़ा निकाल दिया ।इसके बाद मैंने शहर ही छोड़ दिया और पूरे तीन साल बाद आज जब बस अड्डे पर उतरा तो उसे पूरे साजो सामान और एक छोटे से बच्चे के साथ सामने खड़ा पाकर यूं लगा जैसे किसी ने फिर दिल पर गोली दाग दी हो।मैं लड़खड़ा सा गया और जाने कब, कैसे उसके पास पहुँच गया पता नहीं ।शायद वो मेरी कैफियत समझ गई थी । तभी उसका शौहर रिक्शा लेकर आ पहुंचा । मैं कुछ कहता इससे पहले वो अपने शौहर से बोली -"रज्जाक! ये हमारे पड़ोसी जलील मियाँ!,और बेटा बंटी! मामू को सलाम करो जल्दी से "
ठाँय...पास से गुजर रही बारात में किसी कम्बख्त ने गोली छोड़ी ।
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Rahila on March 11, 2016 at 5:31pm
बहुत आभार गुप्ता सर जी! आपकी पहली बार रचना पर उपस्थिति देखकर बहुत हर्ष हुआ । आगे भी आपका प्रोत्साहन चाहूंगी । बहुत शुक्रिया ।सादर
Comment by Rahila on March 11, 2016 at 5:29pm
बहुत आभार आदरणीय आशुतोष सर जी! आप से पहली बार प्रोत्साहन मिला । बहुत खुश हूं कि आपने मेरी रचना के लिये वक्त निकाला बहुत शुक्रिया।सादर नमन
Comment by रामबली गुप्ता on March 11, 2016 at 10:12am
वाह आ.राहिला जी बहुत सुंदर लघुकथा हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 11, 2016 at 10:02am

आदरणीया राहिला जी ..इस सुंदर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर बधाई के साथ 

Comment by Rahila on March 10, 2016 at 7:51am
बहुत शुक्रिया आदरणीय पाठक सर जी ।बहुत अच्छा लगा आपके द्वारा प्रोत्साहन पा कर । सादर नमन
Comment by ram shiromani pathak on March 9, 2016 at 6:03pm
पृष्टभूमि अच्छी तैयार की आपने।।शुभ शुभ
Comment by Rahila on March 9, 2016 at 12:08pm
बहुत -बहुत शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सर जी! सादर
Comment by Rahila on March 9, 2016 at 12:08pm
बहुत आभार आदरणीया नयना दी! सादर
Comment by Rahila on March 9, 2016 at 12:07pm
बहुत आभार आदरणीय सुशील सर जी! आपने रचना के मर्म को बखूबी समझा । बहुत शुक्रिया ।सादर
Comment by TEJ VEER SINGH on March 8, 2016 at 9:34pm

हार्दिक बधाई राहिला जी!बेहतरीन प्रस्तुति!

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