22 22 22 22 22 22
बात सही है आज भी , यूँ तो है प्राचीन 
 जिसकी जितनी चाह है , वो उतना गमगीन
फर्क मुझे दिखता नहीं, हो सीता-लवलीन
खून सभी के लाल हैं औ आँसू नमकीन
क्या उनसे रिश्ता रखें, क्या हो उनसे बात
कहो हक़ीकत तो जिन्हें, लगती हो तौहीन
सर पर चढ़ बैठे सभी , पा कर सर पे हाथ
जो बिकते थे हाट में , दो पैसे के तीन
बीमारी आतंक की , रही सदा गंभीर
मगर विभीषण देश के , करें और संगीन
कुछ तो सचमुच भैंस हैं , बाक़ी भैंस समान
कोई ये समझाये अब , कहाँ बजायें बीन
घर की सारी झंझटें , हो जायेंगी साफ
पिछले हों संस्कार सब , सुविधा अर्वाचीन
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज सर, बहुत ही शानदार प्रस्तुति हुई है. हार्दिक बधाई. दोहा आधारित ग़ज़ल का स्वरुप मुग्ध कर रहा है लेकिन फिर भी इसे अरूज़ के हिसाब से ग़ज़ल कहा जा सकता है ? क्योकि सबसे बड़ी समस्या ग्यारहवीं मात्रा का लघु होना है. उसकी द्विकल पूर्ती के लिए कहीं भी अवसर नहीं है. मात्रिक बह्र की ये अनिवार्य शर्त है. कोरम पूरा हो तभी सदन चलता है. लेकिन हाँ यदि फेलुन फेलुन फ़ाइलुन, फेलुन फेलुन फ़ा / फेलुन फेलुन फ़ाइलुन, फेलुन फेलुन फेल कोई मान्य बह्र है तो इसे ग़ज़ल कहा जा सकता है. मैंने भी छंदोत्सव के लिए दोहा ग़ज़ल का प्रयास किया था लेकिन ग्यारहवीं मात्रा की समस्या से निजात ही नहीं थी तो उस प्रयास को रहने दिया और दोहा आधारित गीत तक ही सीमित रहा. बहरहाल मंच पर एक नवाचार की शुरुआत के लिए बहुत बहुत बधाई. सादर
आदरणीय गिरिराज जी,
आप छठे शेर के दूसरे मिसरे को 'कोई ये समझाये अब , कहाँ बजायें बीन' की जगह अगर 'कोई अब समझाये ये, कहाँ बजायें बिन' और सातवें शेर के दूसरे मिसरे 'पिछले हों संस्कार सब , सुविधा अर्वाचीन' की जगह अगर 'पिछले सब संस्कार हों , सुविधा अर्वाचीन' कर लें तो आपकी पूरी ग़ज़ल 'फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फा' (22 22 22 22 22 2) के वजन पर अरूजी एतबार से भी जायज होगी और मात्रिक छंद के एतबार से भी. आखिरी लघु चुकि साकिन होता है अतः वो तक्ती में शुमार नहीं होता. एक और अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाईयां !
आदरनीय रवि भाई , उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार । बाक़ी चर्चा तो ज़ारी है , जो भी तय हो , मंज़ूर है ।
आदरणीय गिरिराज जी आपकी दोहा गजल का पहले तो आंनद लिया है ।
अब इसके शिल्प पर होने वाली चर्चा से भी कुछ सीख समझ रहे है वैसे हम इसे 22 22 22 22 22 22 बहर के रूप मे ही ले रहे है अब पढने में ये दोहा छंद के अनुसार लगतही है तो क्या बुरा है उस लय मे पढ लीजिये ये जरूरी तो नहीे इसे दोहा गजल कह के दोहा के शब्द कल और मात्रा केे अनुसार ही बदला जाए । इस बहर में 121 या 12 12 को प्रवाह के अनुसार 22 या 22 माना ही जाता है । बाकी अरूज जो कहता है वो जानने के लिए गुणी जनों की राय पढ़ने के लिये लौट कर फिर आते है । बहुत बहुत बधाई आपको । सादर
आदरणीय सौरभ भाई आपकी बात सही है  , फेलुन फेलुन फ़ाइलुन, फेलुन फेलुन फेल  22    22  212  22  22  21   , लेकिन बह्र लिख्ते समय अंतिम 1 को छोड देना पड़ेगा -- 22    22  212  22  22  2 ही किखा जायेगा ऐसा लिख्ने से कुल मात्रा 23 हो रही है और दूसरी बात  -- एक उदाहरण -- किसी किसी ने ये कहा , और किसी ने वो  , अगर प्रथम पंक्ति का विन्यास ऐसा हो तो -- मात्रा विन्यास  --- 1212   22  12  , 2112  22  हो जायेगा  क्यों कि दोहों के कई विन्यास सही होते हैं । अतः मुझे .....  
22   22   22  22  22  22  बह्र लिखना सही लगता है , इसमे   22  को  112   121  211  करने की छूट भी है , आप बतायें क्या सही होगा ।
हम फेलुन फेलुन ... फ़ा के होने पर नहीं आपके निर्वहन पर संकेत दे रहे थे, आदरणीय गिरिराज भाई. दोहे की एक पंक्ति में ग्यारहवीं और चौबीसवीं मात्रा अवश्य ही लघु होती है. लेकिन इसे फेलुन फेलुन... के हिसाब से कैसे साधा जाय, समस्या यहाँ है.
इसी कारण इसे फेलुन फेलुन फ़ाइलुन, फेलुन फेलुन फेल (२२ २२ २१२, २२ २२ २१) के अनुसार निबद्ध कीजिये. सम, विषम हर तरह के शब्द मात्रिक बहर की तरह सहज निभ जायेंगे.
देखियेगा.
आदरणीय सौरभ भाई , आपकी मुखर सरहना से दिल बाग बाग हुआ जा रहा है , आपका हृदय से आभार ।
चूँकि ये गज़ल रूप मे है और बह्र में अंतिम एक मात्रा लिखने की मनाही है इस लिये उस एक मात्रा को हटा देने के बाद कैसा बह्र का क्या रूप होगा तय नही कर पाया , इसी लिये दोहे के 24 मात्रा को 6 फेलुन करना ही उचित लगा , बाक़ी गुणिजन जैसा कहें , स्वीकार है ।
आपकी सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियों में से एक इस प्रस्तुति पर मुखर बधाइयाँ स्वीकारें आदरणीय गिरिराज भाई जी. हर शेर सटीक और तीखा है. जो इस तरह की कहन की आवश्यकता हुआ करती है.
वैसे, मिसरे का वज़न फेलुन फेलुन .. फ़ा बताया है आपने, लेकिन अरुज़िया निग़ाह से तनिक लोचा है .. :-))
मैं इस विन्दु पर सुधीजनों के कहे की प्रतीक्षा करूँगा.
बहरहाल आपकी इस ग़ज़ल पर पुनः चला.. हा हा हा...
आ. सूर्या बाली भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।
आदरणीय भण्डारी साहब बहुत खूबसूरत दोहे ! क्या सच्ची बयानी की है आपने। बहुत बहुत मुबारकबाद
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