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आ० जयनित भाई, बड़ी अच्छी जानकारी मिली . आ ० राजेश दीदी ने तो नियम ही बता दिया . मेरी समझ में हमें ऐसी स्थितियों से बचना चहिये और अन्य विकल्प ढूँढने चाहिए . आपकी गजल् कई मायने में बहुत अच्छी है .
क्यूंकि मुझे भी समझना था ये अतः एक पुस्तक ने हेल्प कर दी आप भी देखिये
५) हर्फ़-ए-उला का आख़िरी अक्षर यदि किसी स्वर योग के कारण दीर्घ मात्रिक रहता है तो इजाफत के बाद "ए" स्वर योजित होने पर उस आख़िरी अक्षर की मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पडता वह पूर्ववत दीर्घ रहता है और 'ए' को अलग से लिख कर लघु मात्रा गिना जाता है
उदाहरण - 'दीवार का साया' इज़ाफत द्वारा 'सायाए दीवार' हो जाता है इसमें साया २२ पर कोई फर्क नहीं पड़ता वह पूर्ववत २२ रहता है और 'ए' की लघु मात्रा को अलग से गिनते है अतः सायाए दीवार का वज्न हुआ - २२१ २२१
इसका एक और उदाहरण "शिकवा-ए-गम" है जिसका वज्न २२१ २ है
इस हिसाब से आपके सौदा -ए -दिल का वज्न --२२ १२ होता है
१२२ मैं सौदा ए दिल कैसे कर सकते हैं मैं भी असमंजस में हूँ आद० गिरिराज जी से सहमत हूँ बाकि अरुज के अच्छे ज्ञानी ही इस का ज्ञान हमें भी देंगे ..इन्तजार है
आदरणीय जयनित भाई , मै ये नही कहता कि इस गाने मे गलत है , लेकिन ये ज़रूर कहूँगा कि फिल्मी गानों के आधार पर अरूज के नियमों को तय करने की कोशिश सही नही है । गानों मे बहुत सी गलतियों को स्वीकार कर लिया जाता है , और अगर धुन अच्छी हो तो चल भी जाते हैं
अगर आपके पास '' गज़ल की बाबत '' हो तो पेज न. 160 देखें । फिर भी ये सही लगे तो ठीक है ! समझने मे मुझसे भी भूल हो सकती है , मै भी तो आखिर सीख ही रहा हूँ , कोई उस्ताद तो हूँ नहीं । मै ही सुधार लूँगा अपनी जानकारी ।
आदरणीय मैने खयाल् ज़ाहिर किया है , इसका मतब ही है कि मै खुद कंफर्म नही हूँ --
देखिए -- हर्फे उला -- सौ दा -- 2 2
हर्फे इज़ाफत -- ए - 1
हर्फे सानी -- दिल 2 -- आपने दा ए दिल - 212 को 122 लिया है यानी दा को गिराया है और ए को उठाया है -- अगर आपको मालूम है कि ये सही है तो , मुझे भी मंज़ूर है , मै स्वयँ इस बात से अनजान हूँ । मेरे लिये भी एक नई जानकारी होगी ।
आदरनीय सौरभ भाई . आ. जयनित भाई , क्षमा चाहूँगा , मै ने अपनी प्रतिक्रिया में मक्ते तो मतला किख दिया था , वैसे आगे की बत सही है जो मै लिखना चाहता था कि - इजाफत मे - ए - की मात्रा 1 लिया जाता है , ऐसा मेरा खयाल है , क्या इजाफत को 2 भी किया जा सकता मात्रा उठा के , मै नही जानता । अभी मिसरा भी नीचे लिख रहा हूँ --
"जय" अब तो छोड़ करना सौदा-ए-दिल -- मात्रा उठा के इजाफत को दो कर लेने में मुझे शंका है , जानकारों की सलाह का इंतिज़ार किया जा सकता है , बदलाव से पहिले ।
निहत्था आफ़ताब आया फ़लक पर,
अभी हमला भी होगा बादलों का।
वाह वाह !
आदरणीय गिरिराज भाई, आदरणीया राजेश कुमारीजी, आईना का ना कई मामले में गिरता हुआ हमने देखा है. दूसरे, मतले का उला ठीक ही है. मैं उस मिसरे को ऐसे पढ़ गया - हरिक चहरे पे था चहरों का पर्दा ..
सही विन्दु यदि अन्यथा है तो अवश्य साझा कीजियेगा.
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