For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ मुक्तक आँखों पर

अँखियों में अँखियाँ डूब गई,

अँखियों में बातें खूब हुई.

जो कह न सके थे अब तक वो,

दिल की ही बातें खूब हुई.

*

हमने न कभी कुछ चाहा था,

दुख हो, कब हमने चाहा था,

सुख में हम रंजिश होते थे,

दुख में भी साथ निबाहा था.

*

ऑंखें दर्पण सी होती है,

अन्दर क्या है कह देती है.

जब आँख मिली हम समझ गए,

बातें अमृत सी होती है.

*

आँखों में सपने होते हैं,

सपने अपने ही होते हैं,

आँखों में डूब जरा देखो,

कितने गम अपने होते हैं?

*

जब रिश्ते रिसते थे हरदम,

आँखों से कटते थे तुम हम,

आँखों में कष्ट हुई जबसे,

कुछ और सन्निकट पहुँचे हम.  

*

लीला प्रभु की भी न्यारी है,

जब चलने की तैयारी है,

बढ़ता जाता है प्रेम तभी,

आँखें फेरन  की बारी है.   

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1680

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2016 at 1:43am

आदरणीय समर साहब, प्रस्तुत मुक्तकों की प्रत्येक पंक्ति मात्रिक रूप से सधी हुई है और वाचिक तौर पर आठ गुरुओं पर निबद्धता है, ठीक उर्दू के अरुज़ के अनुसार !

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2016 at 1:42am

अँखियों में अँखियाँ डूब गई,
अँखियों में बातें खूब हुई.
जो कह न सके थे अब तक वो,
दिल की ही बातें खूब हुई.

जब अँखियों यानी आँख का बहुवचन (भले ही आंचलिक स्वरूप में) का प्रयोग हुआ है तो हुई की जगह हुईं होना श्रेयस्कर न होगा, आदरणीय जवाहरलाल जी ?
************
हमने न कभी कुछ चाहा था,
दुख हो, कब हमने चाहा था,
सुख में हम रंजिश होते थे,
दुख में भी साथ निबाहा था.

जब ’चाहा था’ से पंक्तियाँ दो दफ़े समाप्त हुईं तो चौथी पंक्ति क्यों ’निबाहा था’ हो गयी ? मात्रिक पंक्तियों का निर्वहन करते ’मुक्तकों’ के सामान्य नियम के अनुसार तीसरी पंक्ति तुकान्तता के दायरे से बाहर हुआ करती है. लेकिन चौथी पंक्ति को तो उसी तुकान्तता का निर्वहन करना होगा, जिसका निर्वहन पहली दो पंक्तियों में हुआ है.

या, यदि मुक्तक में दूसरी और चौथी पंक्ति की तुकान्तता बनाये रखना चाहते हैं, गेय कविता की तरह, तो पहली पंक्ति की तुकान्तता के मोह में न फँसें.
*********************
ऑंखें दर्पण सी होती है,
अन्दर क्या है कह देती है.
जब आँख मिली हम समझ गए,
बातें अमृत सी होती है.

यहाँ भी आँखें के बहुवचन में होने से ’देती है’ के स्थान पर ’देती हैं’ होगा न ?
’होती है’ और ’देती है’ का घालमेल हो गया है. इसे ऊपर दिये गये सुझाव के अनुसार दुरुस्त करें, आदरणीय जवाहरलाल जी.
***********************
आँखों में सपने होते हैं,
सपने अपने ही होते हैं,
आँखों में डूब जरा देखो,
कितने गम अपने होते हैं?

यहाँ भी ’होते हैं’ के ठीक पहले के शब्द पर विचार नहीं किया गया है. इस कारण पदान्त तो सही है लेकिन समान्त का निर्वहन नहीं हुआ है.
**********************
जब रिश्ते रिसते थे हरदम,
आँखों से कटते थे तुम हम,
आँखों में कष्ट हुई जबसे,
कुछ और सन्निकट पहुँचे हम.

इस मुक्तक में भी पदान्त के अनुसार समान्त सही नहीं है.
*************************
लीला प्रभु की भी न्यारी है,
जब चलने की तैयारी है,
बढ़ता जाता है प्रेम तभी,
आँखें फेरन की बारी है.

इस मुक्तक में तुकान्तता का कुछ हद तक उचित निर्वहन हुआ है, जवाहरभाई. वैसे कई सुधीजन न्यारी और तैयारी की तुक पर सहज न होंगे.लेकिन अभीकी स्थिति में आपके लिए ऐसी तुकान्तता अभीष्ट है.

शुभेच्छाएँ

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 22, 2016 at 6:28pm

आदरणीय समर कबीर साहब, जितनी मेरी जानकारी है, मुक्तक मात्रा से मुक्त नहीं होता, उसके भी अपने विधान हैं. सौरभ पाण्डेय साहब ने सही इशारा किया है. आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 22, 2016 at 6:26pm

आदरणीय सौरभ सर, पद्य, शिल्प में मैं कमजोर हूँ ... भाव पक्ष को ज्यादा उजागर करना चाहता हूँ. तुकांतता में एकाध जगह गलती हुई है. प्रवाह में भी एकरूपता नहीं है. आपका संकेत सही है. कुछ और मशविरा कर देते तो अज्ञानता समाप्त होती. सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2016 at 4:02pm

आदरणीय जवाहर भाई, व्यक्तिगत रूप से मैं एक अरसे बाद इस पटल पर आपकी कोई पद्य-रचना पढ़ रहा हूँ. अच्छा लगा. 

’मुक्तकों’ के भाव बड़े मनभावन हुए हैं. इसके लिए हार्दिक बधाई.

अलबत्ता,  शिल्पपक्ष को लेकर आप तनिक और सचेत रहा करें. तुकान्तता को लेकर आपका संशय अभी विद्यमान है. चूँकि आपने मात्रिक मुक्तक कहें हैं तो फिर विधान के अन्य विन्दुओं का निर्वहन आवश्यक हो जाता है न ? 

शुभेच्छाएँ

Comment by Samar kabeer on August 22, 2016 at 3:16pm
जनाब जवाहरलाल जी आदाब,हिंदी मुक्तक के बारे में सिर्फ़ इतना जनता हूँ कि ये मात्राओं की क़ैद से मुक्त होते हैं,क्या ये सही है ?

वैसे आपके मुक्तक अच्छे लगे बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद जी आदाब, बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है बहुत बधाई।"
8 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"लक्ष्मण धामी जी अभिवादन, ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
8 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय दयाराम जी, मतले के ऊला में खुशबू और हवा से संबंधित लिंग की जानकारी देकर गलतियों की तरफ़…"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, तरही मिसरे पर बहुत सुंदर प्रयास है। शेर नं. 2 के सानी में गया शब्द दो…"
9 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"इस लकीर के फकीर को क्षमा करें आदरणीय🙏 आगे कभी भी इस प्रकार की गलती नहीं होगी🙏"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय रिचा यादव जी, आपने रचना जो पोस्ट की है। वह तरही मिसरा ऐन वक्त बदला गया था जिसमें आपका कोई…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय मनजीत कौर जी, मतले के ऊला में खुशबू, उसकी, हवा, आदि शब्द स्त्री लिंग है। इनके साथ आ गया…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी ग़जल इस बार कुछ कमजोर महसूस हो रही है। हो सकता है मैं गलत हूँ पर आप…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बुरा मत मानियेगा। मै तो आपके सामने नाचीज हूँ। पर आपकी ग़ज़ल में मुझे बह्र व…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अति सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। लम्बे समय बाद आपकी उपस्थिति सुखद है। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल 221, 2121, 1221, 212 इस बार रोशनी का मज़ा याद आगया उपहार कीमती का पता याद आगया अब मूर्ति…"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service