बड़े लोग कहते रहे, जीतो काम व क्रोध.
पर ये तो आते रहे, जीवन के अवरोध.
माफी मांगो त्वरित ही, हो जाए अहसास.
होगे छोटे तुम नहीं, बिगड़े ना कुछ ख़ास.
क्रोध अगर आ जाय तो, चुप बैठो क्षण आप.
पल दो पल में हो असर, मिट जाएगा ताप .
रोकर देखो ही कभी, मन को मिलता चैन.
बीती बातें भूल जा, त्वरित सुधारो बैन .
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी!
आ. भाई जवाहर लाल जी, अच्छे दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय समर कबीर साहब!
ठीक है भाई ।
आदरणीय समर कबीर साहब, आपका सुझाव स्वागतेय है. मैंने सुधार और सुझाव के लिए ही यहाँ प्रस्तुत किये हैं.
पहले दोहे में - सुधार के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ
"पर ये सब आते रहे, जीवन में अवरोध". तात्पर्य मेरा यही है कि जीवन में अवरोध के रूप में काम क्रोध आते ही रहते हैं... आप उचित सुझाव देंगे...
व्याकरण की गलती बताने के लिए आपका हार्दिक आभार.. सादर
जनाब जवाहर लाल सिंह जी आदाब,अच्छे दोहे रचे आपने,बधाई स्वीकार करें ।
'बड़े लोग कहते रहे, जीतो काम व क्रोध.
पर ये तो आते रहे, जीवन के अवरोध.'
इस दोहे की दोनों पंक्तियों में ताल मेल नहीं है,देखियेगा ।
'रोकर देखो ही कभी, मन को मिलता चैन.
बीती बातें भूल जा, त्वरित सुधारो बैन .'
इस दोहे की पहली पंक्ति में 'ही' शब्द भर्ती का है,इसकी जगह 'तो' शब्द उचित होगा,और दूसरी पंक्ति में 'भूल जा' एक वचन है,और 'सुधारो' बहुवचन,इसलिये 'भूल जा' की जगह "भूल कर'' उचित होगा ।
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