For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2  

झिलमिल तारों सा सपनो के अम्बर में रहते हो क्यों ?

मलयानिल की मधु धारा सा मानस में बहते हो क्यों?

 

रेशम सी शर्मीली आँखे गाथा कहती है मन की

निर्ममता के अभिनय क्षण में अंतर्गत चहते हो क्यों?

 

अंतस में भावों की गंगा यदि पावन है पूजा सी

तो संकल्पों की वर्षा हो फिर पीड़ा सहते हो क्यों?

 

वृन्दावन की वीथी में तुमने ही झिटकी थी बाहें

फिर उन बाँहों को मंदिर की शाला में गहते हो क्यों?

 

प्राणों का रसमय बंधन वह तुमने ठुकराकर तोड़ा  

विरहा की पावक लपटों में अब बेबश दहते हो क्यों?

 

आहों के सरगम पर जीवन जाने है कितने बीते   

तब फिर तुम तटिनी के तट सा राका में ढहते हो क्यों?

 

युग की निष्ठुरता का बाना धारण यदि कर ही डाला

तो सबसे उस मधुचर्या की मृदु बातें कहते हो क्यों ? 

 (मौलिक/अप्रकाशित)

 

 

Views: 1739

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 21, 2017 at 9:17pm

आ० नीलम जी . बहुत शुक्रिया .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 21, 2017 at 9:16pm

आ० जयनित जी , बहुत बहुत आभार .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 21, 2017 at 9:16pm

आ० सतविंदर जी , अनुग्रहीत हुआ . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 21, 2017 at 9:15pm

आ० मिथिलेश जी - आपका स्नेह मेरा हौसला बढाता है. सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 21, 2017 at 9:13pm

आ० समर कबीर साहिब . आभारी हूँ कि आपने इतना समय दिया . वर्तनी की गलती मेरी लापरवाही  है  , आहों की सरगम  बिलकुल सही मार्गदर्शन है . सादर . .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 20, 2017 at 3:17pm

आदरणीय गोपाल सर .सुंदर सुंदर हिंदी के शब्द रूपी फूलों से बना आपका यह ग़ज़ल रूपी गुलदस्ता दिल को छूने वाला है / इस को कई बार गुनगुनाया / आनंद से सराबोर करती इस शानदार हिंदी ग़ज़ल के लिए ढेर सारी शुभकामनायें सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on January 20, 2017 at 1:30pm
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 
Comment by Neelam Upadhyaya on January 20, 2017 at 10:17am

बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है. बधाई स्वीकार करें.

Comment by जयनित कुमार मेहता on January 20, 2017 at 5:43am
आदरणीय गोपाल जी, क्या ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने। तत्सम शब्दों के प्रयोग ने रचना में चार चाँद लगा दिए हैं। आदरणीय समर कबीर जी की बातों से सहमत हूँ। हार्दिक बधाई आपको।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 19, 2017 at 11:48pm
आदरणीय गोपाल कृष्ण सर,इस उम्दा गजल के लिए हार्दिक बधाई@

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service